सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौथा दृश्य (स्थान-उदयपुर । महाराणा और उनके दो-चार खास-खास सरदार राजमहल के एक पार्श्व में खड़े हैं।) एक सरदार-अन्नदाता को रूपनगर से सकुशल लौट आने की बधाई। राणा-परन्तु सरदारो, जब तक मैं रावत रत्नसिंह के समाचार न जान लू-मेरा उद्वग शान्त नहीं हो सकता। अभी तक युद्ध के कुछ भी समाचार नहीं मिले। (चौंक कर ) वह कौन आ रहा है। (एक योद्धा लोहू-लुहान आता है) योद्धा-(राणा के आगे घुटनों के बल गिरकर ) अन्नदाता की जय हो-मैं युद्ध क्षेत्र से आ रहा हूँ। राणाकहो वीर, युद्धक्षेत्र के समाचार कहो ? योद्धा-महाराज, वहाँ ऐसा घमासान युद्ध हुआ कि रक्त की नदियाँ बह गई। जैसे वर्षा ऋतु में बादल उमड़- उमड़ कर, गर्ज-गर्ज कर चौधारी वर्षा करते है उसी भाँति राजपूतों ने शत्रुओं को चारों ओर से काट डाला। राणा--तो युद्ध में हमारी जय हुई ? योद्धा-अन्नदाता-अब इसमें क्या कहना है । श्रीमान् सकुशल कुमारी को हरण कर लौट आए। पापिष्ठ आलमगीर