पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८१

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राजसिंह [छठा साथ आपकी प्रत्येक आज्ञा का पालन करने को उद्यत हूँ। पुरोहित गरीबदास-दुहाई महाराज की, अत्याचारी बादशाह की प्रत्येक आज्ञा कैसे हो सकती है ? राणा-सुनिए आप ! यह तो शिष्टाचार है। दीवानजी-(पढते हुए) 'मैंने पहिले आपकी जो सेवाऐं की हैं उनको स्मर्ण करते हुए नीचे लिखी बातों पर आपका ध्यान दिलाता हूँ जिनमे आपकी और प्रजा की भलाई है। मैंने यह सुना है कि मुझ शुभचिन्तक के विरुद्ध कार्रवाही करने की जो तदबीर हो रही है उसमें आपका बहुत रुपया खर्च हो गया है और इस काम में खजाना खाली हो जाने के कारण उसकी पूर्ति के लिये आपने एक कर जजिया लगाने की आज्ञा दी है। सब दर्बारी-शिव शिव । धिक्कार है इस प्रवृति को। राणा-आप लोग शान्ति से सुनिए । दीवान-(पढ़ते हुए) 'आप जानते हैं कि आपके पूर्वज स्वर्गीय मुहम्मद जलालुद्दीन अकबर शाह ने ५२ साल तक न्यायपूर्वक शासन कर प्रत्येक जाति को आराम और सुख पहुँचाया। चाहे वे ईसाई-मूसाई, दाऊदी, मुसल- मान, ब्राह्मण और नास्तिक हों सब पर उनकी समान कृपा रही। इसी से लोगों ने उन्हें जगद् गुरु की पदवी दी थी।