सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. दृश्य] चौथा अंक 'एक सर्दार-गुण ही जगत में पूजे जाते हैं दीवान-(पढ़ते हुऐ) फिर स्वर्गीय नूरुद्दीन जहाँगीर ने भो २२ वर्ष तक प्रजा की रक्षा कर अपने आश्रित राजवर्ग को प्रसन्न रखा-इसी तरह सुप्रसिद्ध आला हजरत शाहजहाँ ने भी ३२ वर्ष तक दया और नेकी से राज्य कर यशपाया। सब सर्दार-खूब लिखा। दीवान-(पढ़ते हुऐ)'आपके पूर्वजों के ये भलाई के काम थे। इन उन्नत और उदार सिद्धान्तों पर चलते हुए वे जिधर पैर उठाते थे उधर विजय और सम्पत्ति उनका साथ देती थी। उन्होंने बहुत से देश और किले जीते। अब आपके समय में बहुत से प्रदेश आपकी आधीनता से निकल गये हैं और अब आपके अत्याचार होने से और भी बहुत से इलाके आपके हाथ से निकल जायेंगे। आपकी प्रजा पैरों के नीचे कुचली जा रही है और साम्राज्य में कंगाली बढ़ती जाती है । आबादी घट रही है, आपत्तियाँ बढ़ रही हैं। जब गरीबी बादशाह के तक पहुँच गई तो प्रजा की बात ही क्या है। सेना असंतुष्ट है, व्यापारी अरक्षित हैं । मुसलमान नाराज हैं, हिन्दू दुःखी हैं। बहुत से लोग भूखे और निराश्रित रात दिन सिर पीटते और रोते हैं। सब सर्दार-धन्य धन्य ऐसा ही है महाराज! आलमगीर के घर