पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजसिंह [छठा राज्य में तबाही ही तबाही है, किसी की जानमाल व-इज्जत सलामत नहीं है। दीवान-(पढ़ते हुऐ ) ऐसी कंगाल प्रज्ञा से जो बादशाह भारी कर लेने में शक्ति लगाता है उसका बड़प्पन कैसे स्थिर रह सकता है। पूर्व से पश्चिम तक यह कहा जा रहा है कि हिन्दुस्तान का बादशाह हिन्दुओं के धार्मिक पुरुषों से द्वप रखने के कारण ब्राह्मण से लेकर जोगी, वैरागी और मंन्यासियों तक से जजिया लेना चाहता है। वह अपने तैमूर वंश की प्रतिष्ठा का विचार न कर एकान्तवासी और गरीब साधुओं पर जोर दिखाना चाहता है। वे धार्मिक ग्रन्थ जिन पर आपका विश्वास है आपको यही बतलायेंगे कि परमात्मा मनुष्य मात्र का ईश्वर है न केवल मुसलमानों का। उसकी दृष्टि मे मूर्तिपूजक और मुसलमान बराबर हैं। रंग का अन्तर उसकी आज्ञा से ही है। वही सबको पैदा करने वाला है आपकी मस्जिदों में उसी का नाम लेकर लोग नमाज पढ़ते हैं और मन्दिरों में जहाँ मूर्ति के आने घन्टे बजते हैं, उसी की प्रार्थना की जाती है। इसलिये किसी धर्म को उठा देना ईश्वर कीइच्छा का विरोध करना है पुरोहित गरीबदास-निश्चय ऐसा ही है।