पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१८६

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सातवाँ दृश्य (स्थान-दिल्ली के शाही महल के भीतर का नजर बाग उदयपुरी बेगम अकेल रहल रही है । समय-सार्यकाल ।) उदयपुरी बेगम-(स्वगत) बेत खाकर जैसे कुत्ता दुम दबाकर भागता है उसी तरह भाग आए। कहते हैं ये हैं शहनशाहे आलम, शहनशाही की सारी शान धूल मिल गई। मैंने कहा था उस बांदी से चिलम भरवाऊँगी मगर कहाँ ? बादशाह की नाक को लातों से तोड़ने वाली वह मरारूर पाजी गँवारी काफिर लड़की शहनशाहे हिन्द को चरका देकर साफ निकल गई। सारी शहनशाही की शान धूल में मिल गई । (देखकर) वह बादशाह सलामत आ रहे हैं। (हंसकर) बन्दगी जहाँपनाह, फर्माइए वह बाँदी कहाँ है ? मुझे हुक्का भरवाने की बड़ी दिक्कत हो रही है। बादशाह-इतमीनान रखो बेगम, बहुत जल्द वह बॉदी तुम्हारे हुजूर में हाजिर कर दी जायगी। उसके बाद जी चाहे जितनी चिलम भरवाया करना। उदयपुरी बेगम-वल्लाह, जहाँपनाह तो इस तरह फर्मा रहे हैं गोया सब कुछ हुजूर की ताकत ही में है। बादशाह-मैं आलमगीर हूँ और मेरी ताकत का अन्दाज्जा लगाना औरतों का काम नहीं ।