पृष्ठ:राजसिंह.djvu/१९५

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राजसिंह [नवाँ होना था वह हुआ। हमें झटपट अपनी शक्तियों का संचय कर डालनाचाहिए। क्योंकि ऑधी और तूफान की भाँति बादशाह की सेना मेवाड़ को विध्वंस करने को आने में अब विलम्ब नहीं है। हमारी शक्तियाँ सीमित हैं और हमे बहुत ही कम समय है। दुर्गादास-अन्नदाता का अभिप्राय पाऊँ तो मैं स्वयं अकवर से इस सम्बन्ध में बातचीत का सिलसिला शुरू करूं। राणा-अवश्य कीजिये । परन्तु केवल इसी पर निर्भय नरहिये। दृढ़ हाथों से राठौर सैन्य का संगठन कर डालिये। हमारी असली युक्ति और राजनीति तो हमारी तलवार है। समझे ! दुर्गादास-समझ गया महाराज । ऐसा ही होगा। (जाता है)