पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२०६

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दृश्य चौथा अंक १६१ हसनअली-इसमें भी शक है। शाहजादा साहेब खुद उदयपुर मे मुकीम हैं, तमाम मुल्क में हमारी फौज फैल गई है। मेरा तो खयाल ऐसा है कि हम चारों तरफ थाने बैठाते हुए तमाम मुल्क और किलों को शाही दखल मे करते जायें। अकबर-यही किया जाय । अब आप १० हजार फौज लेकर उसकी अलग-अलग २ टुकड़ियाँ बनाकर हर ओर से दुश्मन को घेर लें और मुल्क के भीतरी हिस्सों में घुसते जायें। हसनअली-दुश्मन को घेरना तो नामुमकिन है । हाँ, सूने गाँव, उजाड़ खेत, सूखे हुए कुओं और बर्बाद रास्तों को घेर लिया जायगा। मगर एक मुसीबत है। अकबर-वह क्या ? हसनअली-अगर बाहर से रसद न मिली तो सिपाही और घोड़े भूखे-प्यासे मर जावेंगे। सब से बड़ी बात चारे और पानी की है । मुल्क भर में न एक बूंद पानी है न एक तिनका चारा। अकबर-पानी के लिए नये कुएँ खुदवा दिये जायें। हसनअली-यह बहुत ही मुश्किल है। इन पहाड़ी जगहों में पहले तो बड़ी गहराई तक पानी मिलना ही मुश्किल है फिर कहीं कहीं तो कुएँ खुद भी नहीं सकते । दूर-दूर कोई नदी नाला भी नहीं है। फिर चारे के लिए कोई