पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२०७

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१६२ राजसिंह [दूसरा चारा नहीं है। सिपाहियों का राशन अगर रोक दिया गया, तो बेमौत मरे। अकबर-तब आप किस खयाल से फर्मा रहे थे कि मुल्क फतह हो चुका, जंग की जरूरत नहीं। हसनअली-मैं यही कह रहा था, कि कोई नज़र आवे तो लड़ाई की जाय । अब लड़े तो किस से ? अकबर-बड़ा ही पेचीला मामला दरपेश है । मैं गौर करूँगा। अभी आप अपनी टुकड़ियों को इधर-उधर पानी और चारे की तलाश में भेजे । जो चीज़ जहाँ मिले जब्त कर ली जाय । मन्दिर ढहा दिये जायँ, गाँव फूक दिये जायँ, जानवर और आदमी जो मिलें कल कर दिये जायँ । एक बार इस खौफनाक मुल्क को पूरी तौर पर पामाल कर देना पड़ेगा। हसनअली-बहुत खूब। (जाता है) (पर्दा बदलता है।)