दृश्य] पाँचवाँ अंक १६५ बादशाह-बहुत खूब । अब हमारी तजवीज यह है कि तमाम पहाड़ी इलाके को घेर कर देसूरी, उदयपुर और राज- समुद्र के घाटों से भीतर घुसा जाय । तहब्बुर खाँ-जो इर्शाद। बादशाह-शाहजादा मुहम्मद अकबर को उदयपुर के मुहाने पर तैनात होने का फर्मान भेज दिया जाय और उसकी मदद को हसन अलीखाँ, शुजात खॉ, रजीउद्दीनखाँ रहें। उनके साथ ५० हजार फौज और फरंगियों का तोपखाना भी जाय। तहब्बुर स्वाँ-बहुत अच्छा जहाँपनाह ! बादशाह और तुम देवारी के घाट का दखल कर लो। साथ ही मांडल वगैरा परगनों को भी शाही दखल मे लेकर थाने बैठा दो। तहब्बुर खाँ-जहाँपनाह की जैसी मर्जी। बादशाह-हम खुद जल्द राजसमुद्र के मोर्चों पर जायेंगे। सादुल्ला खॉ को लिख दो कि अपनी फौज के साथ वहाँ हमारा इन्तजारी करे। तहब्बुर खाँ-बहुत खूब, मगर जब दुश्मन सामने आता ही नहीं तो लड़ाई कैसे होगी? बादशाह-मुल्क को चारों तरफ से घेर कर मुल्क के भीतरी हिस्सों में घुसते ही चले जाओ और तमाम मेवाड़ को खालसा करके शाही थाने बैठाते चले जायो।
पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१०
दिखावट