पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२१६

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दृश्य पाँचवाँ अंक २०१ पीरवख्श-रोनी सूरत बना कर और जमीन में ठोकर मार कर गजल गाता है)। क्या हाल हो गया है दिले बेकरार का। आजार हो किसी को इलाही न प्यार का। मशहूर है जो रोजे कयामत जहान में । पहला पहर है मेरी शवे इन्तजार का । (खूब जोश में खम ठीक कर) इस साल देखना मेरी वहशत के चुलबुले । आया है धूम-धाम से मौसम बहार का। (नाचने लगता है) (एक सिपाही दौड़ता हुआ आता है) सिपाही-हूजूर, दुश्मनों ने परे के परे साफ कर दिए। हमारी फौजें हार कर भाग रही हैं। नायब-ऐं १ यह क्या बदकलाम ज़बान पर लाया । (मुसाहिबोंसे) क्या यह मुमकिन है ? कमरुद्दीन-हुजूर कतई ना मुमकिन । नायब-(एक कुश पैचवान का खींचकर) वही तो मैंने कहा (सिपाही से) खैर तुम जाओ। (सिपाही जाता है दूसरा सिपाही घबराया आता है) सिपाही-हुजूर ग़जब हो गया, दुश्मन की फतह हो गई। वे इधर ही बढ़े आ रहे हैं । भागिये हुजूर, जान बचाइये (दोनों मुसाहिब घबराकर उठ खड़े होते हैं । शोर गुल बढ़ता है। बहुत से सवार नंगी तलवारें लिये सब को घेर लेते हैं)