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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२३०

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दृश्य] पाँचवाँ अंक २१५ का अखाड़ा था जो सिपाहियाना ठाठ से घोड़ों पर सवार थीं। इसके पीछे गोलंदाज फौज थी। इस हिस्से को भी हमने चुपचाप घाटी में चला जाने दिया। राणा-बहुत खूब! गोपीनाथ राठौर -अब फौज का तीसरा हिस्सा आया। इसमें अनगिनत पैदल फौज थी। और उसके पीछे लौंडी, मोटिए-मजदूर, रंडी, भडुए, मामूली लोग, घोड़े, खञ्चर, डोली, कहार, डेरे, तम्बू थे। महाराज, इस प्रकार बरसाती नदी की तरह उमड़ती हुई यह सेना घाटी में घुस गई। हम चुप-चाप देखते रहे । राणा-इसके बाद? गोपीनाथ राठौर-महाराज, यही वह राह थी जिसके रास्ते अक- बर गया था। बादशाह की योजना यह थी कि झटपट शाहजादा अकबर की फौज से मिल जाय और बीच में कुमार जयसिंह की सेना मिले तो उसे कुचल डालें। फिर दोनों फौजें मिलकर उदयपुर में घुस पड़ें और राज्य को तहस-नहस कर डालें । पर जब उसकी नजर घाटी के बराल की पहाड़ियों पर चढ़ी राजपूत सेना पर पड़ी तो उसके होश उड़ गए। वह तुरन्त समझ गया कि बराल में दुश्मन को छोड़ कर आगे बढ़ना बड़े खतरे का काम है । वह अभागा अब पलट कर लड़ भी नहीं सकता था।.क्योंकि उस तंग दर्रे में