२१६ राजसिंह निवाँ फौज को पलट कर युद्ध के लिए तैयार करना सम्भव ही न था। न उतना वक्त ही था। उसे भय था कि ज्योंही फौज को घुमाया जायगा राजपूतों की सेना उस पर टूट पड़ेगी और आनन फानन उसकी फौज के दो टुकड़े हो जायेंगे और तब एक हिस्से को बड़ी ही आसानी से काट डाला जायगा। राणा-उसका यह सोचना बिलकुल ठीक था। इसके बाद क्या हुआ? गोपीनाथ राठौर-सामने जयसिंह की सेना का भय था। आगे बढ़ना सम्भव न था। पीछे रसद लुटने का डर था। लौटने का भी कोई उपाय न था। बादशाह सेना की गति रोक कर विमूढ़ हो बैठा। राणा-विमूढ होना ही था। गोपीनाथ राठौर-निरुपाय उसने हमारे भेदिये की शरण ली और उसे उदयपुर का नया मार्ग खोजने को कहा। वह बादशाह को उसी सँकरीले दर्रे में घुसा ले गया जहाँ हमारी तमाम मोर्चे-बन्दी तैयार थी, बादशाह ने सेना को लौटने का हुक्म दिया, पर उसका सिलसिला उल्टा हो गया। सेना का पिछला हिस्सा पहले दरे में घुसा। राणा-(इंसकर) यह बिना मौत मरना हुआ। गोपीनाथराठौर-महाराज ! बादशाह ने हुक्म दिया कि तम्बू और
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