पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२३२

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[श्य पाँचवाँ अंक २१७ फालतू चीजें उदयसागर के रास्ते जाँय । वह सेनापति तक्तखाँ को आगे करके, पैदल सिपाहियों और तोप- खाने को लेकर दरे में घुस पड़ा। उसके घुसते ही हम चीते की भाँति छलाँग मार कर उस पर दूद पड़े और क्षण भर में फौज के दो टुकड़े हो गये। उनमे का एक टुकड़ा तो बादशाह के साथ दर्रे में घुस गया दूसरा हमने सामने होकर काट डाला। यह वह भाग था जहाँ बेगमात थीं। वह कुहराम मचा कि जिसका नाम । अहदी जो बेगमों की रक्षा के लिए तैनात थे कोई हथियार न चला सके। सब बेगमात, सारा खजाना और पूरी रसद हमारे कब्जे में आगई। बादशाह दर्रे में घिर गया। दर्रे के उस पार कुमार जयसिंह की चौकी है। इस पार विक्रमसिंह का थाना है। पहाड़ की चोटियों पर ५० हजार भील, भारी-भारी पत्थरों को इकट्ठा किये तीर-कमान लिये श्रीमानों की आशा की प्रतीक्षा में हैं। आलमगीर भूखा, प्यासा असहाय दर्रे में कैद है राणा-वाह, यह असाध्य-साधन हुआ। गोपीनाथ राठौर- (हाथ जोड़कर) महाराज, अबदो बातं विचार- रणीय हैं । पहिलो बात बेगमात के संबंध में है । उनका क्या किया जाय।