पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२४०

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दृश्य पाँचवाँ अंक चारुमती देखा जायगा। अभी तो अपनी करनी तुम भोगो। हमारी चिलम तो भरलाओ। (चंचल से) किसी बाँदी से कह कि इस नई बाँदी को चिलम भरने का सामान उदयपुरी बेगम-(ऐठकर) क्या मैं ? बादशाह की बेगम, चिलम भरूं ? यह गुस्ताखी। खुदा की कसम मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकती। चारुमती-बादशाह की बेगम जब थीं तब थी अब मेरी बाँदी हो, चटपट चिलम भरो। उदयपुरी बेगम-तुम्हारा इतना मकदूर. चारुमती-चुप, अदब से बात करो। आज तुम हमारी चिलम भरो । कल बादशाह आलमगीर राणा का उगालदान उठायेगा (निर्मल से) इस बाँदी को लेजा। निर्मल-उठो, वह चिलम तमाखू और आग है। उदयपुरी बेगम-तुम सब कम्बख्तों को सजा मिलेगी। मैं उदयपुर का नामोनिशान मिटा दूंगी। चारुमती-मैं चाहती थी तुम्हारे साथ भलमनसाहत से पेश आऊँ मगर तुम्हारे इस गुरूर से मेरी कोमल वृच्चियाँ नष्ट हो गई। महाराणा ने बादशाह को जीता छोड़ दिया और तुम सबको भी जाने का हुक्म दिया उसका अहसान तो न मानोगी उल्टी जबान चलाओगी। जानती नहीं बादशाह की नाक पर लात मारने वाली