पृष्ठ:राजसिंह.djvu/२५

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po यजसिंह [दूसरा और अपने बाकी इलाके अधीन करने हैं। इसके बाद समस्त राजपूत शक्ति को जाग्रत करके उसे हम एकी- भूत करेंगे। यह सब श्री एकलिंग भगवान की कृपा से अवश्य होगा। रावत मेघसिंह-(हाथ जोडकर) पृथ्वीनाथ ! आलमगीर के खरीते का क्या होग! राणा-आलमगीर कौन ? रावत मेसिह-औरंगजेब ने बादशाह होकर अपना नाम आलमरी.र पीर दश्तगीर रखा है। राणा-(हंस कर) ओह समझा। कुंवर सुल्तानसिंह को काका अरिसिंह के साथ भेटभलाई देकर दिल्ली भेज दिया जायगा। वे बादशाह आलमगीर को तख्तनशीनी और विजय की बधाई दे श्रावेंगे। (कुछ सोचकर ) परन्तु सरदारो ! इस दुबले पतले पीर दश्तगीर से हमें कठिन मोर्चा लेना होगा। वह दृढ़ हाथों से राज्य करेगा। परन्तु चिन्ता नहीं। मैं राजपूताने में वह जाति की ज्योति जगाऊँगा कि जिसके णगे मुगल तख्त झुकना होगा । परन्तु अभी यह बात रहे कल प्रातःकाल ही हमें माण्डलगढ़ पर चढ़ाई करना है। सेना को कूच की आज्ञा देदो, और सब तैयारियाँ कर लो। रावत मेघसिह-जो आज्ञा अन्नदाता ! (पर्दा गिरता है)