पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३३

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पाँचवाँ दृश्य (स्थान-मेवाड़ का एक गॉव । दो तीन किसान बैठे भाग ताप रहे हैं और तमाखू पी रहे हैं।) एक-सुना भाई तुमने ! राणा जी गोमती नदी के वेग को रोककर एक बड़ा भारी ताल बना रहे हैं। उसमें सोलह गाँवों की सीमा आवेगी। दूसरा--गॉवों का क्या होगा ? तीसरा-हमारी धरती भी जो ताल में गई तो हम खायेंगे क्या ? पहिला-उसका बन्दोबस्त तो राणा जी करेंगे , राणा जी क्या हमारी जमीन यों ही छीन लेंगे। दूसरा-छीन कैसे लेंगे । बदले में जमीन मिलेगी, हमने सुना है। तीसरा-खाक सुना है तुमने । रुपये मिलेंगे रुपये। समझे। पहिला और यदि कोई अपनी धरती न दे तो ? दूसरा- - कैसे दे १ गजा माँगे और न दे, यह भी कहीं हों सकता है? तीसरा-इस ताल से हमारा ही तो लाभ है। दूसरा-हमारा क्या लाभ है? तीसरा-अरे, ताल बनेगा वो हमारी धरती को पानी की कोई दिशात ही न रहेगी।