पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३५

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गजमिह [पाँचवाँ एक-काकाजी हम राणा की फौज में अपनी भरती करावेंगे। दूसरा-और हम भी। मैंने और करनसिंह ने-तलवार के वे.वे हाथ राणाजी को दिखाये कि उन्होंने प्रसन्न होकर हमें यह सोने का कड़ा दिया। एक किसान-शाबाश पुत्र ! राजपूतों का सच्चा गहना तो तल- वार ही है। हल बैल तो ठाली बैठा रुजगार है। एक नवयुवक-काकाजी, क्षत्रिय के लिये यही धर्म है। आज गुरुजी बता रहे थे दूसरा किसान-ठीक कहते हो । जाओ। अब सो रहो (सायी से ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे सोया हुआ मेवाड़ नाग है। दोनों युवक-हाँ, काकाजी, हमने पाठशाला में एक गीत सीखा है। उदयपुर में सब लड़के वह गीत गाते टोली बाँध कर निकलते हैं। आप सुनेंगे काकाजी ? किसान-सुनाओ बेटे सुनेगा। ( दोनों बालक गावे) अभय रहो मेवाद। अरावली के दिव्याचल में, बनघाटी दुर्गम पथ पूरित- नभमण्डल के नीचे निर्भय- -