पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३६

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दृश्य पहिला अंक मुदित रहो मेवाड़ । अभय रहो मेवाड़ । हल्दीघाटी के तरु पल्जव, वीरवरों की अमर कीर्ति का- मधुर राग गाते झुक झुक कर विजय रहो मेवाड़। अभय रहो मेवाड़। (गाते हुए जाते हैं। पर्दा बदलता है) .