पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३७

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दृश्य छठा (स्थान-उत्यपुर का सर्व-ऋतुविलास महल । राणा राजसिंह और महरानो कृष्णकुँवर । समय- सम्या काल) रानी-स्वामी, क्या यह सच है कि सलूम्बरा सरदार रावत रघुनाथसिंह ने मेवाड़ त्याग दिया। राणा-सच है ! वे अपना धर्म छोड़कर बादशाह के पास दिल्ली चले गये हैं। रानी-रावत रघुनाथसिंह जैसे चतुर राजनीतिज्ञ वीर मेवाड़ में कम हैं ! महाराज, उनके साथ अन्याय हुआ है। सलूम्बरा का ठिकाना उनके बाप दादों के रक्त का मान है। आपने वह चौहानों को दे दिया ? गणा--मैं वीर की पूजा करुंगा। पारसौली का केसरीसिंह वीर सरदार है। रानी-तो आप उन्हें उदयपुर की गद्दी दे सकते थे। अपने सरदार का मान-भंजन वीर पूजा नहीं। रघुनाथसिंह जो प्रकृत वीर है। राणा-मुझे मालूम हुआ था कि वह मुझसे द्वेष करता है। रानी-यह असत्य है-वह राज्य का सच्चा सेवक है। राणा-उसका बादशाह की सेवा में जाना ही उसे अपराधी ।