पृष्ठ:राजसिंह.djvu/३८

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दृश्य पहिला अंक प्रमाणित करता है। सुना है वह बादशाह के कान भरकर उसे मेरे विरुद्ध उभार रहा है। रानी-महाराज, दुष्टों ने आपके कान भर आपको सरदार के विरुद्ध उभाड़ा है। महाराज को चूंडा और उसके वंशजों का उपकार यों न भूलना चाहिये था । गद्दी उनकी थी, यह तो आप जानते हैं। राणा-परन्तु राणा होने पर तो मुझे ऑखें खोलकर ही रहना चाहिये? रानी-हाँ स्वामी, यही मेरी इच्छा है। मैंने सरदार के पुत्र रत्नसिंह को बुलाया है। राणा-किस लिए महारानी। रानी-इसीलिये कि उसे बता दिया जाय कि सलूम्बरा का ठिकाना उन्हीं का है। आप उसे विश्वास दिलादें कि आप नया पट्टा रद्द कर देंगे। राणा-ऐसा नहीं हो सकता महागणी । राज-काज में स्त्रियों को अधिक रुचि रखना ठीक नहीं। रानी- जब महाराणा के ऐसे विचार हैं वो ऐसा ही होगा ! परन्तु स्वामिन् ! स्त्री पति की अर्धाङ्गिनी है । वह सब कुछ सहन कर सकती है पर स्वामी के यश पर बट्टा नहीं सह सकती। राणा- क्या कहा--बट्टा ? कौन मेरे यश पर बट्टा लगाता है ?