पृष्ठ:राजसिंह.djvu/४६

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दृश्य] पहिला अक्र बादशाह-आइये मौलाना ! ऐ सच्चे दीनदारों, रसूले पाक ने इस नाचीज़ को काफिरों के इस मुल्क की बादशाह बनाया। सो इसलिये कि दीने इस्लाम का झडा हिन्दुस्तान में बुलन्द रहे । अय मेरे सच्चे दोस्तो । आप बताइये कि कैसे यह सवाब का काम अंजाम दिया जा सकता है ? एक मुल्झा-जहाँपनाह ! खुदा का शुक्र है कि हुजूर के खयालात दीने इस्लाम की हिफाजत और बहबूदी की ओर हैं । इस सवाब के बदले खुदा आपको जन्नत न दे तो मैं जामिन हूँ। बादशाह-मैं चाहता हूँ कि तमाम मुल्क में दीने इस्लाम की रोशनी फैलाने के लिये बुतपरस्ती का खात्मा कर दिया जाय । इसलिये हमने तमाम सल्तनत मे हुक्म जारी किये हैं कि जहाँ जो पुराना मन्दिर हो तोड़ डाला जाय और उस जगह पाक मस्जिद बना दी जाय दूसरा मुल्ला-वल्लाह ! क्या सवाब का काम किया है तीसरा-जहाँपनाह सचमुच औलिया हैं। बादशाह-मैं एक अदना दीन का खादिम हूँ। हाँ, तो इस हुक्म की तामील सख्ती से हो रही है और उसे और मुस्तैदी से अमल में लाने के लिये मैंने एक महक्रमाही कायम कर दिया है।