पृष्ठ:राजसिंह.djvu/४९

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- आठवाँ दृश्य (स्थान-रूपनगर का अन्तःपुर। कुछ सहेलियाँ बाग में झूल रही है और गा रही हैं। सावन की बहार है। समय-प्रातःकाल) राग-झिोठी सखि भूली और मुलाओ । शीतल पवन चलत पुरवैया । झुक झूमत तर डार पात- भरत-भरत रिमझिम रिमझिम सखि रोम-रोम हर्षाओ सखि भूलो० ॥१॥ क्षण में धूप क्षणेक में बादल । क्षण में बिजली क्षण में रिमझिम । ऋतु मनमोहन पावस आई मन उमंग उमगाओ। सखि भूलो० ॥२॥. हँस हँस पैग बढ़ाओ सजनी। गायो राग जगाओ सजनी । प्रेम ज्योति के जगमग दीपक । उर में आज जलायो । सखि ॥३॥