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पृष्ठ:राजसिंह.djvu/५४

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. दृश्य] पहिला अंक ३६ बुढ़िया-देखिये यह आलमगीर बादशाह की तस्वीर है। चारुमती अजब तस्वीर है । मैं इसे जूते की नौक पर मारती हूँ। बुढ़िया-खामोश, अगर बादशाह सुन पावेंगे तो रूपनगर के किले की एक ईट तक न मिलेगी। चारुमती-यह बात है ? सहेलियों, इस तस्वीर पर बारी-बारी से एक-एक लात मारो। (सब बारी-बारी से खात मारती हैं) चारुमती-जिसने अपने सगे भाइयों के रक्त से हाथ रेंगे, और अपने बूढ़े बाप को कैद कर के तख्तेताऊस पर अशुभ चरण रख मुगलों के इतिहास को कलंकित किया है, उसकी एक राजपूतनी यही प्रतिष्ठा कर सकती है। लो बीस मुहर दाम और बीस' मुहर इनाम । जाओ। (बुडिया हक्का-बक्का हो कर जाती है, सहेलिया दंग रह जाती है) (पर्दा गिरता है)