पृष्ठ:राजसिंह.djvu/५६

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दृश्य दूसरा अंक नागरिक-हिन्दू । सिपाही-तो चलते फिरते नजर आओ। नागरिक-क्यों? किसलिये ? सिपाही-हुक्म नहीं है। नागरिक-क्यों हुक्म नहीं है ? सिपाही-बहस करता है । बदजात ! नागरिक-गाली मत देना, खबरदार ! जानते हो मैं टेढ़ों को सीधा सिपाही- -(धक्का देकर) तो ले हो सीधा' (दोनों में गुत्थमगुस्या होती है भीड इकट्ठा हो जाती है। एक-क्या मामला है, क्या झमेला है ? नागरिक-मिया जी कहते हैं चलते फिरते नजर आओ-गाली देते हैं और गर्दन नापते हैं। दूसरा-अन्धेर है अन्धेर, गाली क्यों दी जी । तीसरा-और हाथापाई क्यों की ? चोया-यह तो अन्धेरगर्दी ! पाँचपाँ-बीच बाजार यह जुल्म ! सिपाही-यहाँ यह क्यों खड़ा था ? नागरिक-सड़क पर खड़े थे, सड़क किसी के बाप की नहीं है। दो चार आदमी-बेशक, रास्ते पर लोग चलने फिरने भी अब न पावेंगे। सब-अन्धेर है, अन्धेर !