पृष्ठ:राजसिंह.djvu/५७

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४२ राजसिंह [पहिला सिपाही-हुक्म नहीं है, हुक्म । एक हुक्म क्यों नहीं है ? सिपाही-जहाँपनाह की सवारी जुमे की नमाज अदा करने को आ रही है, तुम गन्ने हो। दूसरा-(भीड़ में से) गधे तुम हो। हम वादशाह मलामत से अर्ज करने आये हैं। सिपाही-किसने हमें गाली दी। उसे हम गिरफ्तार करेंगे। पकड़ो उसे। दो चार नागरिक-गाली तुमने दी तुमने । (१०१२० श्रादमी इकट्ठे हो जाते हैं) सब-क्या हुआ ? क्या हुआ ? दो चार-हंगामा हो गया-सुल्म है जुल्म । दो चार और-अन्धेर है अन्धेर । कुछ लोग क्या हुआ भाई, क्या हुआ ? एक-यह सिपाही कहता है यहाँ से जाओ दो चार-क्यों हट जाये । हम यहीं जमे रहेंगे। एक-हम जहाँपनाह से अर्ज करने आये हैं। अज बिना किये नहीं हटेंगे। दो चार हम अपनी जान देंगे। (एक अफसर घोड़ा दौड़ाता हुआ पाता है) अफसर-यह क्या हंगामा है ? सिपाही-ये सरकश बासी लोग इकह हो रहे हैं।