पृष्ठ:राजसिंह.djvu/५८

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दूसरा अंक दृश्य] सब लोग हम नागरिक हैं । हम जहाँपनाह से अर्ज करने आये हैं। सिपाही-इन्होंने बादशाह सलामत को गाली दी है। ये सब फसाद करने को आमादा हैं। ये सब वासी हैं। सब-हम बादशाह सलामत से अर्ज करेंगे। अफसर-तुम सबको तोप के मुंह पर उड़वा दिया जायगा। सब-हम अपनी जान हथेली पर धरे हुए हैं। हम मर मिटेंगे पर अर्ज किये बिना न जायेंगे। (किले से तोपों की सलामी दागी जाती है ) अफसर-तुम सब लोग भाग जाओ, जहाँपनाह जुमे की नमाज अदा करने तशरीफ ला रहे हैं। सब-हम हजरत सलामत से अर्ज करेंगे । हम... अकसर-(सवारों से)घोड़े छोड़ दो और रोंद डालो बदमाशों को। (बोड़ों से कुचले जाकर कुछ लोग चिल्लाते हैं। बादशाह की सवारी पाती है। नकीब चिल्लाते हैं) नकीब-(उच स्वर से ) रास्ता करो-रास्ता करो-हटो-बचो। सब-दुहाई खुदाबन्द । हमारी अर्ज सुनी जाय। हम गरीब हिन्दू जजिया नहीं दे सकते। एक-जजिया हमारे बाप-दादों ने भी कभी नहीं दिया। दूसरा-जन्नत नशीन जलालुद्दीन अकबर शाह ने उसे माफ कर दिया था। उसके बाद बादशाह जहाँगीर ने और आला हजरत शाहेजहाँ ने भी उसे माफ रखा था। ......