पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६०

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दूसरा दृश्य स्थान-उदयपुर । समय-मध्यान्ह । महाराणा राजसिंह का दार। माराणा गद्दी पर विराजमान हैं। खास-खास सरदार अपने-अपने स्थानों पर बैठे हैं राठौर दुर्गादास और सैनिक सामने ग्वड़े हैं) राणा-(शोक पूर्ण स्वर मे) तो जोधपुर आज अनाथ हुआ। राठौरपति जसवन्तसिंह अब नहीं है ? दुगादास-हॉ महाराणा, अंपने देश और मित्रों से दूर जमरुद के किले में उन्होंने वीर प्राण त्यागे। राणा-एक मरवर उठ गया। (सिर झुका लेते हैं। दुर्गादास-हम लोग-महाराज ! रानियों और राजपरिवार के सहित मारवाड़ लौट रहे थे। लाहौर में हमें रुकना पड़ा । रानी मां ने वहाँ कुँवर को जन्म दिया। राण-जोधपुर का यह भावी राजा चिरंजीवी हो । दुर्गादास-अन्नदाता का आशीर्वाद सफल हो। परन्तु हमारी दुर्दशा की कहानी अत्यन्त करुण है। राणा-कहो ठाकुर, मेवाड़ राठौर राजवंश की हर विपत्ति में उसके साथ रहेगा। दुर्गादास महाराणा की जय हो। इसी आशा से मैं शरण आया हूँ। लाहौर में हमें खबर मिली कि इधर महा राज का स्वर्गवास हुआ और उधर दिल्ली में पाटवी कुँवर पृथ्वीसिंह मार डाले गये।