पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६१

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. राजसिंह [दूसरा राणा-(आश्चर्य से) हैं । मार डाले गये ? दुर्गादास-(ऑसू भरकर ) हाँ महाराणा, बादशाह ने उन्हें दर्बार मे बुलाकर खिलत दी थी वह विष मे रंगी थी। कुमार खिलत पहन घर लौट रहे थे-मार्ग ही में उनका प्राण निकल गया। राणा-पिता को कैद करने और भाइयों को क़त्ल करने वाला कर बादशाह जो न करे सो थोड़ा। दुर्गादास-यह वजू के समान खबर सुनकर भी हमने नवशिशु के जन्म पर सन्तोष किया, पर हमें तुरन्त ही खबर मिली कि लावारिस होने के कारण जोधपुर खालसा कर लिया गया है। रानियों और राज परिवार को लेकर हमे दिल्ली हाजिर होना चाहिये । राणा-यह किसलिये ठाकुर ? दुर्गादास-बादशाह को विश्वास नहीं हुआ कि रानी को और कुँवर जन्मा है, वह उसकी तस्दीक किया चाहता था। राणा-अवश्य इसमें कोई गूढ उद्देश्य होगा। दुर्गादास-ऐसा ही था महाराज ! दिल्ली जाकर हम रूपनगर की हवेली में ठहरा दिये गये। वहाँ जाते ही शाही सेना ने हमें घेर लिया और बलपूर्वक कुमार को माँगा। अन्त में हमें प्राणों पर खेलना पड़ा कुमार को किसी भाँति बचाकर हम मुगल सैन्य की छाती पर पैर रख निकल भागे। महाराणा, इस विपति