पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६२

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दूसरा अंक दृश्य समुद्र से मैं, मुकुन्ददास, सोनिंग और महारानी बची शेष सव कट मरे-राजवर्ग की सब स्त्रियाँ वहीं जल कर खाक हो गई । पर कुँवर की रक्षा हो गई। राणा-(क्रोध और आवेश में) धन्य शूर, धन्य वीर । कुमार और रानी अब कहाँ हैं। दुर्गादास-अन्नदाता शरण में। (सोनिंग को संकेत करता है। वह कुमार शिशु को लाकर राणा की गद्दी पर डाल देता है) राणा-(तलवार छूकर) शरणागत को अभय । ठाकुर दुर्गादास, जब तक मेवाड़ में एक भी वीर तलवार पकड़ने योग्य है तब तक मारवाड़ का यह भावी अधीश्वर मेवाड़ की छत्रछाया में फले-फूले। दुर्गादास-महाराणा की जय हो । महाराज (बालक को गोद में उठा लेता है ) मारवाड़ के अनाथों पर आपने बड़ी कृपा की। राणा-कृपा नहीं दुर्गादास, यह तो धर्मपालन है। जो राजा धर्म का पालन न कर, शरणागत को विमुख करे वह अधर्मी है। बादशाह आलमगीर ने प्रारम्भ ही से अनर्थ किया है। उसका राज्यारोहण रक्तपात और अन्याय से हुआ है जिस मुराल साम्राज्य की जड़ राजपूतों की सलधारों को खरीद कर अकबर, जहाँगीर