पृष्ठ:राजसिंह.djvu/६३

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राजसिंह दूसरा और शाहजहाँ ने मजबूत की-उसे यह आलमगीर खोखली कर रहा है । राजपूताने की जिस वक्त सोई हुई आत्मा जाग उठेगी मुग़ल तख्त भस्म हो जायगा। दुगादास महाराणा ! दुर्भाग्य से राजपूताना सो रहा है। आत्म-सम्मान और संगठन के भाव उसने भुला दिये हैं। इसी से उसकी वीरता में कारिख लग गई है। इसे जगाना होगा। महाराज ! आप हिन्दू-पति हैं। आपकी ओर तमाम राजपूताने की दृष्टि है। राठौरों की बाँह आपने गही है। राठौरों की तलवारें आपके चरणों में हैं। राणा-वीरवर, निश्चय रखो । राठौर और सीसोदियों की शक्ति मिलकर मुगल साम्राज्य का विध्वंश कर देगी परन्तु अभी हमें समय की प्रतीक्षा करनी होगी। हाँ, महा- राणी अब कहाँ हैं। मेवाड़ के राजमहलों की यदि वे शोभा बढ़ावेंगी तो यह मेवाड़ का सौभाग्य है। दुर्गादास-धन्यवाद, महाराणा ! रानी मा और हम लोग अब मारवाड़ को जगावेंगे। हम घर-घर अलख जगावेंगे।. हम विपत्तियों की पहाड़ियों को चकनाचूर करेंगे। जब तक हमारा प्यारा जोधपुर स्वाधीन न हो जायगा। राणा-धन्य वर, धन्य राठौर ! अभी मैं जोधपुर के भावी अधिपति के गुजारे के लिए १२ गॉवों सहित केलवे का पट्टा लिख देता है।