पृष्ठ:राजसिंह.djvu/७०

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चौथा दृश्य (स्थान-मेवाड़ का बिकट वन । एक पहाड़ी पडाव । समय-सन्ध्या- काल । भीलों की एक छोटी सी बस्ती । एक बूढ़ा थका हुमा ब्राह्मण सिर पर बड़ा सा बोझा लिये श्राता है) ब्राह्मण-अरे भाइयों, इस ब्राह्मण को आज रात आश्रय मिलेगा? एक भील-कौन हो तुम ? ब्राह्मण-ब्राह्मण हूँ, मेरे साथ देवता हैं। (सब भील खड़े हो जाते है) एक बूढ़ा भील-(आगे बढ़कर ) तुम्हारे साथ देवता हैं ? ब्राह्मण-हाँ भाई। भील-कहाँ से आ रहे हो ब्राह्मण-कहाँ से बताऊँ भाई। मेरी दुःख की कहानी बहुत भारी है। बैठो तो कहूँ। आज रात आश्रय दोगे ? भील-आराम से बैठो। आग जल रही है। देवता को सिर से उतार लो। (ब्राह्मण सिर से बोझ उतार एक ऊँची जगह रखता है) भील-(निकट पाकर ) अब कहो। ब्राह्मण-मैं जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर सब राजपूताना घूम आया। भील-किस लिये ब्राह्मण देवता ?