पृष्ठ:राजसिंह.djvu/७७

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राजसिंह [छठा एकता नही। स्वार्थ और घमण्ड ने राजपूतों की वीरता और तलवार की धार को उन्हीं के लिए शाप बना दिया है। इससे महाराज, इस विषय पर जैसा ठीक समझे विचार कर ले। राजा-विचार हो चुका-मैं शाही महल में लड़की नहीं दूंगा। दीवान-तो महाराज, इस छोटे से राज्य की कुशल नहीं। हम अपना सब कुछ खोना पड़ेगा। राजा-मैं खुशी से सर्वस्व दूंगा। पर अपने राजपूती जीवन पर दारा न लगाऊँगा। दीवान-अभयदान मिले तो और एक बात निवेदन करूँ। राजा-निर्भय होकर जो चाहे कहिये। श्राप राज्य के पुराने शुभ- चिन्तक और हमारे मित्र हैं। आप कभी कच्ची बात न कहेंगे। दीवान-महाराज, आत्मरक्षा का एक और उपाय है। राजा-वह क्या ? दीवान-राणाराजसिंह को राजकुमारी ब्याह दीजिये । राणा राजसिंह इस समय राजपूताने का दैदीप्यमान नक्षत्र हैं। वह परम राजनीतिज्ञ, चतुर, कर्म, वीर और प्रतापी है। राजपूताने का वही केन्द्र है। उसकी मित्रता और सम्बन्ध भविष्य में हमारे लिए परम सुखद होगा।