बर जो पालम में मुकीम था पहिले ही अजमेर को रवाना कर दिया गया था। बादशाह की चढ़ाई की खबर पाते ही राणा ने अपने प्रमुख सरदारों को बुला युद्ध सभा की। इस सभा में कुँ॰ जयसिंह, कुँ॰ भीमसिंह, रावल जसराज, (डूँ गरपुर का) राणा- क्त भावसिंह (म॰ अमरसिंह के पुत्र सूरजमल का तीसरा पुत्र) महाराज मनोहरसिंह, (म॰ कर्णसिंह के पुत्र गरीबदास के पुत्र) महाराज दलसिंह, (म॰ कर्णसिंह के छोटे पुत्र छत्रसिंह के पुत्र) अरिसिंह (महाराणा के भाई) अरिसिंह के चार पुत्र (भगवानसिंह, सुभागसिंह, फतहसिंह, गुमानसिंह) राव सबलसिंह चौहान (बदले वाला) झाला चन्द्रसेन (बड़ी सादड़ी वाला) रावन केसरी- सिंह और उसका पुत्र गंगादास (बानसी वाले) झाला जैतसिंह (दलवाडे का) पँवार वैरिसाल (बीजोलिया का) रावत महासिंह (बेगू वाला) रावत रत्नसिंह (सलूँ वर का) साँवलदास (बदनौर का) रावत मानसिंह (कानौड़वाला) राव केसरीसिंह (पारसौली का) महकमसिंह (भींडरवाला) राठौर दुर्गादास, राठौर सौनिक, विक्रम सोलंकी, रावत रुक्मांगद (कोठारिये का) झाला जसवन्त (गोगृंदे का) राठौर गोपीनाथ (घाणेराव का) राजपुरोहित गरीब- दास, मेहता अमरसिंह (नीमड़ी का) खीची रामसिंह, डोडिया महासिंह, मन्त्री दयालदास और अबूमलिक अज़ीज उपस्थित थे,
सलाह यह ठहरी कि सब कोई पर्वतों में चले जाँय और बस्तियाँ उजाड़ दी ज़ाँय। ५० हज़ार भील और बहुत से भोभिये सरदार भी यहाँ राणा से आ मिले। नेणवारा (भोमट) में राणा का परिवार मुकीम हुआ। राणा के पास सिर्फ २० हज़ार सवार और २५ हज़ार पैदल थे। राणा ने घाट-घाट और नाके नाके पर ऐसा बन्दोबस्त कर दिया कि पद-पद पर शत्रुओं का रास्ता रोका जाय और उनका खज़ाना और रसद लूट ली जाय।