पृष्ठ:राजसिंह.djvu/९१

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, राजसिंह [नयाँ कहा करती हो कि जीयन कैसा सुन्दर है, कैसा मनोरम है, कैसा बहुमूल्य है। रानी-तभी तो जीवन उत्सर्ग का इतना महात्म्य है। सड़ी गली चीजें तो लोग यों ही फेंक देत हैं, प्रियतम चीज़ को उत्सर्ग करना सबसे बड़ा त्याग है। जयसिंह-प्रियतम चीज को उत्सर्ग करना ? रानी क्यों नहीं, फूल खिलता है, जब वह धीरे २ विकसित होता है कैसा सौन्दर्य बखेरता है। जब वह पूर्णरूप से विकसित हो जाता है उसमें सौरभ का समुद्र प्रवाहित होता है। वही उसके उत्मर्ग उसी समय उसे भट्टी में डालकर इत्र ग्वींच लेना चाहिये। नहीं तो जयसिंह-नहीं तो? रानी-(करुण स्वर में) वह मुभी कर सूख जायगा, उसकी पंखु. ड़ियाँ झड़ जायेंगी और उसका जीवन व्यर्थ होगा। अस्तित्व नष्ट होगा। जयसिंह-मनुष्य का जीवन भी ऐसा ही है कुछ, तुम यह कहा चाहती हो? रानी-हाँ स्वामी, और राजपूतों का सबसे अधिक । जयसिंह क्यों। काममय