पृष्ठ:राजसिंह.djvu/९२

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दूसरा अंक ou दृश्य रानी-त्याग श्रेष्ठ है, यह सब कहते हैं। पर प्राण त्याग सबसे श्रेष्ठ है और वह क्षत्रिय युद्ध में त्यागते हैं। इसलिये संसार में सबसे श्रेष्ठ त्यागी क्षत्रिय है। जयसिंह-यह हुआ क्षत्रिय पुरुष का धर्म, अब क्षत्रिय बाला की बात भी कहो रानी-वह उस विकसित फूल की सुगन्ध है । फूल के जीवन के साथ उसके बाद भी सौरभ बखेरना उसका काम है। फूल जब भभके में तपाया जाता है, तब भी वह अतुणा रहती है वह अमर है-अक्षय है । वह प्राणों से सीधा सम्बन्ध रखने वाली गन्ध है। फूल के प्राणों का निचोड़ उसी में है स्वामी । जयसिंह-(निकट श्राकर )यह तुम्हारे भीतर कौन बोल रहा है प्रिये ! क्या तुम मेरी वही मुग्धा-सरला बाला कमल हो ? नहीं नहीं कोई देव अंश तुम में है। रानी-(हँसकर) है स्वामी, वह अंश राजपूत शक्ति का है । जो इस आपकी दासी के स्त्रीत्व से पृथक् उस पर शासन कर रहा है। यह नारी शरीर आपका दास है; पर वह राजपूत शक्ति नहीं। जयसिंह-वह क्या है ? रानी-वह तुम्हारी इस तलवार की धार से भी प्रखर है। घातक भी और रक्षक भी।