पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/११३

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श्रेणी के बाईस प्रधान जागीरदार उसके नियन्त्रण में काम करते थे। जयसिंह ने एक दिन अपने बाईस शूरवीर जागीरदारों के साथ मुगल-दरबार में बैठकर अपने दोनों हाथों में एक-एक गिलास लेकर कहा- "मेरे हाथों का एक गिलास दिल्ली और दूसरा सितारा है।" जिस गिलास को उसने दिल्ली कहा, उसे पृथ्वी पर पटक दिया और दूसरे को टुकड़े-टुकड़े करके उसने कहा- "सितारा का पतन हो जाने से दिल्ली का सौभाग्य मेरे दाहिने हाथ में है। यदि मैं चाहूँ तो आसानी के साथ मैं दिल्ली का पतन कर सकता हूँ।" दरबार में कही हुई जयसिंह की यह बात बादशाह औरंगजेब तक पहुंच गई। उसमें सब कुछ करने की क्षमता इन दिनों में थी। वह दिल्ली का सम्राट था। उसने न जाने कितने राजपूत राजाओं का सर्वनाश किया था। उसने जिस तरह से जसवन्तसिंह के जीवन का नाश किया था, उसी घृणित तरीके से उसने जयसिंह का सर्वनाश करने का निश्चय किया। औरंगजेब भयानक पड़यन्त्रकारी था, उसने जयसिंह के विरुद्ध एक विपैले पड़यन्त्र की रचना की। राजस्थान की प्रथा के अनुसार, बड़े राजकुमार को ही पिता का सिंहासन प्राप्त होता है। जयसिंह के दो लड़के थे-रामसिंह और कीरतसिंह । बड़ा होने के कारण रामसिंह पिता का उत्तराधिकारी था। लेकिन बादशाह औरंगजेब ने छोटे लड़के कीरतसिंह को उकसा कर कहा- "जयसिंह के मरने के बाद आमेर का राज्याधिकार रामसिंह को मिलेगा। लेकिन यदि तुम अपने पिता जयसिंह को मार डालो तो राजस्थान की प्रथा का उल्लंघन करके मैं तुमको आमेर के राज सिंहासन पर बिठाऊँगा। इस बात का मैं तुमको वचन देता हूँ।" राजकुमार कीरतसिंह को संसार का ज्ञान न था। वह राजनीति की कलुपित चालों से अपरिचित था। बादशाह औरंगजेब ने सिखा-पढ़ाकर राजकुमार कीरतसिंह को जयसिंह के विरुद्ध तैयार कर दिया और कीरतसिंह ने अफीम के साथ विप मिलाकर अपने पिता जयसिंह को पिला दिया। उससे उसकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार पिता का सर्वनाश करके राज-सिंहासन प्राप्त करने के लिए कीरतसिंह बादशाह औरंगजेब के पास गया। बादशाह का मनोरथ पूरा हो चुका था। अब उसको कीरतसिंह की खुशामद करने की आवश्यकता न थी। उसने उसके साथ उपेक्षा पूर्ण व्यवहार किया और आमेर के राज सिंहासन पर विठाने के बजाय बादशाह ने कीरत सिंह को कामा नामक एक जिला जागीर में दे दिया। जयसिह की मृत्यु के पश्चात् उसका वड़ा लड़का रामसिंह आमेर के सिंहासन पर बैठा। जयसिंह को मुगल दरबार में छः हजारी मनसब का पद मिला था। परन्तु रामसिंह को दरबार में चार हजारी मनसव का पद दिया गया। इसके बाद उसे आसाम के युद्ध में जाना पड़ा। सन् 1690 में रामसिंह की मृत्यु हो गयी। उसके बाद उसका लड़का विशन सिंह आमेर के राज सिंहासन पर बैठा। जयसिह के बाद आमेर राज्य का फिर से पतन आरम्भ हुआ। इन दिनो में वहाँ का शासन मुगल बादशाह की उंगलियों पर चल रहा था। बादशाह औरंगजेव किसी का शुभचिन्तक न था। जिसने अपने पिता, भाइयो और बहनों का सर्वनाश किया था, वह किसी दूसरे का शुभचिन्तक कैसे हो सकता था। स्वाभिमानी जयसिंह ने कभी औरंगजेब के पड़यन्त्रों की परवाह न की थी। उसने शिवाजी को जो वन, गि था, उसकी उसने पूर्ण रूप से रक्षा की और