पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५३

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तैयार किया। उन पहाड़ी लुटेरों को दमन करने के लिये गिरिधर ने अपनी तैयारी आरम्भ की। उसने सोचा यदि हम एक बड़ी सेना लेकर उन लुटेरों के विरुद्ध जाएँगे तो वे भयभीत होकर पहाड़ की कन्दराओं में छिप जाएँगे और हमारे लौट आने पर उनके अत्याचार फिर होने लगेंगे। इसलिये उनका दमन करने के लिये इतनी छोटी सेना साथ लेकर जाने की जरूरत है कि जिससे वे लोग युद्ध करने के लिये सामने आवें। गिरिधर ने यही किया। वह अपने साथ एक साधारण सेना लेकर रवाना हुआ और पर्वत पर पहुँच कर वह घूमने लगा। एकाएक वहाँ पर लुटेरों का एक दल दिखायी पड़ा। गिरिधर ने तुरन्त उन पर आक्रमण किया। दोनों ओर से मार-काट आरम्भ हो गयी उसने लुटेरों के दल से बहुत देर तक युद्ध किया। अन्त में उन लुटेरों का सरदार मारा गया और उनकी पराजय हुई। गिरिधर की इस सफलता पर वादशाह बहुत प्रसन्न हुआ और गिरिधर को राजा की उपाधि दी गई। गिरिधर इसके वाद बहुत दिनों तक जीवित नहीं रहा। जमना नदी में स्नान करने के समय मुगल वादशाह के दरवार के एक पदाधिकारी मुसलमान के द्वारा वह मारा गया। यह घटना इस प्रकार है "एक दिन खण्डेला राजा गिरिधर का एक कर्मचारी दिल्ली के एक लुहार की दुकान पर बैठा हुआ अपनी तलवार की मरम्मत करा रहा था। उस समय दूकान के सामने से होकर एक मुसलमान गुजरा। उसने इस कर्मचारी को एक अन्य असभ्य आदमी समझकर और लुहार की दुकान पर बैठकर उसे चिढ़ाना आरम्भ किया। वह कर्मचारी राजपूत था। उसने राजस्थानी भापा में धीरे से उत्तर दिया। इसके वाद उस मुसलमान ने आग का एक टुकड़ा उस कर्मचारी की पगड़ी पर डाल दिया। आग से जव पगड़ी जलने लगी तो उस राजपूत कर्मचारी को क्रोध आया। उसने अपनी तलवार उठाकर उस मुसलमान के टुकड़े-टुकड़े कर दिये।" जो मुसलमान उस राजपूत कर्मचारी के द्वारा मारा गया, वह वादशाह के दरवार के एक प्रसिद्ध अमीर का नौकर था। जव उस अमीर ने यह घटना सुनी तो वह अत्यन्त क्रोधित हुआ। अपने साथ कुछ आदमियों को लेकर वह अमीर खण्डेला राजा के निवास-स्थान पर पहुँचा। गिरिधर उस समय वहाँ पर न था। वह जमना नदी के उस स्थान पर पहुंचा, जहाँ पर गिरिधर नहा रहा था। अमीर ने उस पर आक्रमण किया, जिससे खण्डेला राजा गिरिधर स्नान करता हुआ मारा गया।" ___ गिरिधर के कई पुत्र थे। द्वारिकादास सव से वड़ा था। इसलिए वही अपने पिता के सिंहासन पर बैठा। इसके थोड़े ही दिनों के वाद द्वारिकादास एक पड़यंत्र में फंस गया। नूनकरण का एक वंशज मनोहरपुर में शासन करता था। वह द्वारिकादास के साथ एक पुरानी शत्रुता मानता था। दिल्ली का वादशाह एक दिन शिकार खेलने गया था। जंगल से वह एक शेर को पकड़ लाया। वादशाह ने अपने दरवार के लोगों से पूछा- "इस शेर के साथ कौन युद्ध कर सकता है?" मनोहरपुर के राजा ने वादशाह से कहा- "रायसलोत वंशी द्वारिकादास प्रसिद्ध शूरवीर नाहर सिंह का शिष्य है। वह इस सिंह के साथ युद्ध कर सकता है।" 145.