पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१५८

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इन दिनों में वादशाह के दरवार में सैयद बन्धुओं का आधिपत्य चल रहा था। वहादुर सिंह उनसे मिल गया और उनको प्रसन्न करके उसने अपना राज्य प्राप्त कर लिया। लेकिन इसके बाद भी खण्डेला राजधानी में दिल्ली की एक सेना का मुकाम रहा और उस सेना का खर्च वहादुर सिंह ने देना मन्जूर किया। राजा बहादुर सिंह के तीन लड़के थे-केशरी सिंह, फतेह सिंह और उदय सिंह। वहादुर सिंह की मृत्यु के बाद केशरी सिंह पिता के सिंहासन पर बैठा। उसने अपने पिता का अनुकरण किया और वादशाह के दरवार में जाकर वहाँ की सेना के संरक्षण में रहने की अभिलापा प्रकट की। इन्हीं दिनों में मनोहरपुर के राजा ने वादशाह से मिलकर अपने राज्य का उद्धार किया। उसे जव मालूम हुआ कि केशरी सिंह बादशाह के दरवार में आया है तो उपको उसके प्रति ईर्पा पैदा हुई। वह नहीं चाहता था कि वादशाह के दरवार में केशरी सिंह को कोई स्थान मिले। उसने केशरी सिंह के विरुद्ध पड़यंत्र पैदा किया और उसके भाई फतेह सिंह से मिल कर उसने कहा- "आप भी बहादुर सिंह के लड़के हैं। खण्डेला में केवल केशरी सिंह को राज्य का अधिकारी वनकर रहने का हक नहीं है। आप केशरी सिंह से आधे राज्य पर अपना अधिकार लीजिये।" फतेहसिंह उसके बहकावे में आ गया और उसने अपने भाई केशरी सिंह के साथ झगड़ा शुरू कर दिया। खण्डेला का दीवान समझदार था। उसने दोनों भाइयों को समझाने की कोशिश की। लेकिन उसको सफलता न मिली। उसने देखा कि दोनों भाइयों के झगड़े से खण्डेला का सर्वनाश होगा और शत्रु लोग इसका लाभ उठायेंगे तो उसने खण्डेला राजधानी में जाकर राजमाता से बातें की और उनको सभी प्रकार समझाकर कहा कि आप को ऐसा करना चाहिए, जिससे दोनो भाइयों में झगड़ा न हो। यदि फतेह सिंह नहीं मानता तो दोनों में राज्य का बँटवारा कर देना अच्छा है। राजमाता ने दीवान के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। खण्डेला राज्य पाँच भागों में विभाजित किया गया। तीन भाग केशरी सिंह को और दो भाग फतेहसिंह को दिये गये। इस विभाजन के अनुसार दोनों भाई राजधानी में वराबर के अधिकारी वन गये परन्तु इसके बाद भी दोनों भाइयों के वर की शांति न हुई। केशरी सिंह खण्डेला को छोड़कर कावटा नामक स्थान में जाकर रहने लगा। दोनों भाइयों में यहाँ तक शत्रुता बढ़ गई कि वे एक दूसरे को देखना तक नहीं चाहते थे। केशरी सिंह जव खण्डेला राजधानी में आता तो फतेह सिंह वहाँ से चला जाता। मनोहरपुर के राजा का यही अभिप्राय था कि केशरी सिंह और फतेह सिंह कभी मिलकर न रह सकें। इसलिए उसने पड़यंत्र रचा था। इसमें उसको सफलता मिली। केशरी सिंह के दीवान को भली-भाँति यह मालूम था कि इन दोनों भाइयों के लड़ने में मनोहरपुर के राजा का पड़यंत्र काम कर रहा है। उसने पूरी चेष्टा इस बात की कि दोनों भाइयों में किसी प्रकार का झगडा न हो और वे प्रेम से रहें। इसीलिए उसने राजमाता से मिल कर राज्य का बँटवारा करा दिया था। लेकिन उसके बाद भी वे दोनों एक दूसरे के शत्रु वने रहे। इस प्रकार की परिस्थितियों को देख कर दीवान ने सोचा कि फतेह सिंह कभी केशरी सिंह के लिए संकट 150