पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/१६७

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भयानक अकाल पड़ा। राज्य में चारों तरफ हाहाकार आरम्भ हुआ। इस अकाल के कारण गोविन्द सिंह को प्रजा से कर वसूल करने में बड़ी कठिनाई हुई। महरोली के सामन्त ने गोविन्दसिंह से राज्य में घूमकर खेती की दशा देखने की प्रार्थना की। इसके लिए जव गोविन्द सिंह तैयार हुआ तो ब्राह्मणों ने विरोध करते हुए उससे कहा- "वाहर जाने के लिए आज का दिन अच्छा नहीं है।" __गोविन्द सिंह ने ब्राह्मणों की इस वात पर ध्यान नहीं दिया और वह राज्य में खेती की दशा देखने के लिए रवाना हुआ। उसके साथ खेजड़ोली नामक स्थान का रहने वाला एक कर्मचारी था। गोविन्द सिंह उसका विश्वास करता था। उसकी जिम्मेदारी में गोविन्द सिंह ने कुछ मूल्यवान चीजें रख दी, जो खो गयीं। गोविन्द सिंह उससे वहुत अप्रसन्न हुआ। कर्मचारी ने अपने निरपराध होने के अनेक प्रमाण दिये। लेकिन गोविन्द सिंह ने उसका विश्वास नहीं किया। इस अवस्था में उस कर्मचारी को बहुत ग्लानि मालूम हुई। उसे अपने अपराध में किसी वड़े दण्ड की आशंका होने लगी। इसलिए उस कर्मचारी ने रात के समय गोविन्द सिंह को जान से मार डाला। गोविन्द सिंह के पाँच लड़के थे- (1) नरसिंह (2) सूर्यमल (3) वाघसिंह (4) जवान सिंह और (5) रणजीत सिंह । उसके इन पुत्रों के द्वारा उसके वंश की वृद्धि हुई। ___पिता के वाद नरसिंह खण्डेला के सिंहासन पर बैठा। घरेलू संघर्प और विद्रोह के कारण खण्डेला की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियाँ बहुत निर्वल हो गयी थीं। पड़ोसी राज्यों ने इस अवसर का लाभ उठाकर अपनी सीमायें बढ़ा ली थीं। दिल्ली की मुगल बादशाहत बहुत कमजोर पड़ गयी थी। आमेर के राजा ने अपने निकटवर्ती राज्यों से लाभ उठाकर शक्ति और सम्मान की वृद्धि की थी। शेखावत राज्यों के साथ उसका शान्तिपूर्ण सम्बन्ध चल रहा था। इन्हीं दिनों में वहाँ पर मराठों के अत्याचार आरम्भ हुए। लोगों ने शेखावाटी में चारों तरफ लूटमार आरम्भ कर दी और वहाँ के सामन्तों ने अपना सब कुछ बेचकर मराठों को माँगी हुई रकमें अदा की। इसके बाद उन लोगों ने छुटकारा पाया। जो सामन्त मराठों को उनकी माँग के अनुसार धन नहीं दे सके, उनको बहुत दिनों तक कैदी होकर मराठों के साथ रहना पड़ा। इसके बाद भी उनसे कुछ न मिलने पर मराठों ने उनको छोड़ दिया। मराठा लुटेरो ने इन दिनों में सभी प्रकार के अत्याचार शेखावाटी में किये। मेडता के युद्ध के बाद मराठों के इस दल ने शेखावाटी पहुँचकर सबसे पहले विवाई पर आक्रमण किया। वहाँ के लोग ववराकर दूसरे नगरों की तरफ भाग गये। लेकिन अस्सी राजपूतों ने अपने दुर्ग के भीतर जाकर मराठों के साथ लड़ने का निश्चय किया। मराठों ने विवाई पर अधिकार करने के बाद वहाँ के दुर्ग पर आक्रमण किया। उस दुर्ग में जो राजपूत मौजूद थे, वे युद्ध करते हुए मारे गये। उस दुर्ग पर अधिकार कर लेने के वाद मराठे खण्डेला की तरफ रवाना हुए। खण्डेला के चार मील रह जाने पर मराठों के दल ने होदीगाँव नामक स्थान पर जाकर मुकाम किया और अपना दूत भेजकर खण्डेला के राजा नरसिंह और इन्द्रसिंह से वीस हजार रुपये की माँग की।* नरसिंह और इन्द्रसिंह ने अपने दो सामन्तों को इस विषय में वातचीत इस लुटेरे मराठा-दल में सभी मत्री, अधिकारी और दृत केवल ब्राह्मण थे। ब्राह्मण लोग इस प्रकार के कार्य में बड़े होशियार होते हैं। जत्रत पड़ने पर वे साहस से भी काम लेते हैं। दृत का कार्य करने में ये ब्राह्मण लोग बहुत चतुर पाये जाते हैं। इन ब्राह्मण दृतों ने यूरोप के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ माकिया वेली को भी बुरी तरह से ठगा था। 159