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निर्बल बना कर केवल अपने आश्रित कर लिया था। उसने अपने पिता के नगर शाहपुरा के दुर्ग और बीलाड़ा, भटौती और पासली के दुर्गो को भी गिरवा कर नष्ट कर दिया। लक्ष्मण सिंह के इस प्रकार के अत्याचारों से दुःखी होकर उसका पिता अपने नगर को छोड कर जोधपुर चला गया और वहीं पर वह रहने लगा। लक्ष्मण सिंह के अधिकार में इन दिनों जितने भी ग्राम और नगर थे, उनकी संख्या पन्द्रह सौ थी और उनसे लक्ष्मण सिंह को वार्पिक आठ लाख रुपये की आमदनी होती थी, उसने अपने नाम पर लक्ष्मणगढ़ नाम का एक दुर्ग बनवाया और उसके अतिरिक्त उसने दूसरे कई स्थानों पर दुर्ग तैयार कराये। उसने अपने अधिकार में एक अच्छी सेना का संगठन किया था। उसकी विशाल सेना में पांच सौ सैनिकों को वेतन दिया जाता था और शेष पाँच सौ सैनिकों ने राज्य की तरफ से भूमि पायी थी। खण्डेला पर अधिकार करने के बाद लक्ष्मण सिंह ने अपनी शक्तियों को अधिक सुदृढ़ बना लिया।* सिद्धानी शेखावत वंश की एक प्रवल शाखा है। शेखावत लोगों का वर्णन समाप्त करने के बाद सिद्धानी वंश का संक्षित परिचय यहाँ पर देना बहुत आवश्यक है। इसलिए आगामी पंक्तियों और पृष्ठों में हमने इसी वंश का उल्लेख किया है। रायसाल ने अपने राज्य को अपने सातों पुत्रों मे बॉट दिया था। उसमें भोजराज को उदयपुर और उसके अधीन ग्राम और नगर मिले थे। भोजराज के वंश में अधिक संख्या बढी और वे भोजराज के नाम पर भोजानी नाम से प्रसिद्ध हुए। भोजराज को मिले हुए इसी उदयपुर में शेखावत सामन्त एकत्रित होकर आवश्यकता पड़ने पर परामर्श किया करते थे। भोजराज से कई पीढ़ियों के बाद उसका वंशज जगराम उदयपुर के सिंहासन पर बैठा। उसके छः लड़के थे। सब से बड़े लड़के का नाम था साधु। वह पिता से झगड़ा करके दशहरे के दिन अपने राज्य से निकल कर चला गया। जहाँ पर सिद्धानी लोग रहा करते थे, वह फतेहपुर राज्य कहलाता था। झुंझुनूं इसका प्राचीन नाम था। वहाँ के निवासी समस्त सिद्धानी, कायमखानी, अफगानी नवाब के शासन में रहा करते थे। वह नवाब दिल्ली के बादशाह की अधीनता मे शासन करता था। साधु अपने राज्य से निकलकर उस नवाब के पास गया। नवाब ने उसको सम्मानपूर्वक अपने यहाँ स्थान दिया। साधु वहाँ पर कुछ दिनों तक रहने के बाद नवाब के निकट अत्यन्त विश्वासी और उपयोगी साबित हुआ। इसलिए उसने फतेहपुर का समस्त शासन सम्बन्धी कार्य साधु को सौंप दिया। वहाँ पर शासन करते हुए साधु ने कुछ दिन और व्यतीत किये। उसने फतेहपुर राज्य में अपना पूरा अधिकार जमा लिया। इसके बाद उसने एक दिन वृद्ध नवाब से कहा-"आपकी ५ सन् 1876 ईसवी में एक सब से ऊँचे शिखर पर जहाँ पहले कोई दुर्ग था और इन दिनों मे वह नष्ट हो गया था, लक्ष्मणगढ बनवाया था। यह दुर्ग बहुत सुदृढ और श्रेष्ठ समझा जाता है। कहा जाता है कि खोकर राजपूतों के नाम पर खण्डेला नाम की उत्पत्ति हुई है। खोकर राजपूतों का उल्लेख भाटी लोगों के साथ पाया जाता है । खोकर राजपूत निश्चित रूप से सीथियन थे। खण्डेला में चार हजार घर हैं और ठसमें अस्सी ग्राम हैं। उदयपुर का प्राचीन नाम काइस है, उसमें पैंतालीस ग्राम हैं। कुछ लेखर्को ने कायमखानी लोगों को अफगान नहीं अपितु चौहान वंश के मुसलमान राजपूत माना है-अनुवादक + 184