पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२०५

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........................ से जो नये असुर और दानव पैदा हो जाते थे, उनका उत्पन्न होना बन्द हो गया। इसलिये युद्ध करने वाले असुरों और दानवों का अन्त हो गया। चारों क्षत्रियों की जिन कुल देवियों ने युद्ध-क्षेत्र में पहुँचकर असुरों और दानवों के रक्त का पान किया था, उनके नाम इस प्रकार पढ़ने को मिलते हैं: चौहान की कुलदेवी आशा पूणा परिहार की कुलदेवी गाजन माता सोलंकी की कुलदेवी क्यूँज माता प्रमार की कुलदेवी ........................ सञ्चायर माता असुरों और दानवों का अन्त हो जाने के बाद देवताओं ने आकाश में जयध्वनि की। स्वर्ग से फूलों की वर्षा की गयी। इसके बाद स्वर्ग लोक से देवताओं ने आकर विजयी क्षत्रियों की प्रशंसा की। क्षत्रियों के छत्तीस वंशों में अग्नि वंश सबसे श्रेष्ठ है। क्योंकि उनके अतिरिक्त जो राजपूत वंश हैं, वे स्त्रियों के गर्भ से उत्पन्न हुए हैं। लेकिन जो वंश अग्नि से उत्पन्न हुए हैं, वे श्रेष्ठ और पवित्र हैं। चन्द कवि का आश्रय लेकर हमने ऊपर लिखा है कि परशुराम के द्वारा क्षत्रिय राजाओं के मारे जाने पर यज्ञ का जो अनुष्ठान हुआ, उसमें ऐसे क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई जो राक्षसों और दानवों का नाश कर सकें। हमें इसके सम्बन्ध में किसी प्रकार का तर्क नहीं करना चाहिये। उसकी आवश्यकता भी नहीं है। लेकिन चन्द कवि ने अपने ग्रन्थ में जो इस प्रकार का वर्णन किया है, उसमें सत्य है, परन्तु उस सत्य को इतिहास का रूप नहीं दिया गया। एक इतिहासकार की तो एक बात का अनुसंधान करना ही पड़ेगा कि क्षत्रिय राजाओं के अभाव में वढ़ती हुई अराजकता को नष्ट करने के लिए और अत्याचारियों को निर्मूल करने के लिये जो चार शूरवीर क्षत्रिय यज्ञ के द्वारा उत्पन्न किये गये, वे कौन थे? उस समय का इतिहास यह था कि अच्छे शासकों का पूर्ण रूप से अभाव था और उस अभाव में शासन का नियंत्रण नहीं रहा था। इसीलिये सभी प्रकार की अशान्ति और अव्यवस्था पैदा हो गयी थी। उस समय विश्वामित्र को चिन्तित होकर उस यज्ञ का अनुष्ठान करना पड़ा। उस समय जो लोग पैदा हुये और समाज के अधिकारियों के द्वारा स्वीकृत हुये, वे या तो यहाँ के आदिम निवासी रहे होंगे अथवा वे कोई विदेशी थे। उनकी शक्तियों को समझ कर ब्राह्मणों ने उनको शासन के अधिकारियों के रूप में स्वीकार किया। इन दो के सिवा किसी तीसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। अव प्रश्न यह पैदा होता है कि वे कौन थे? इसका निर्णय आसानी के साथ किया जा सकता है। यहाँ के आदिम निवासियों की शारीरिक आकृति और वनावट के साथ यदि विदेशियों की तुलना की जाये तो समझ में आ सकता है कि वे लोग दोनों में से कौन थे? यहाँ के आदिम निवासी लोगों का रंग काला होता है और उनमें किसी प्रकार की श्री और सुन्दरता नहीं होती। लेकिन यज्ञकुण्ड से जो चार क्षत्रिय पैदा किये गये, वे प्राचीन राजाओ के समान शक्तिशाली, श्रीयुत और प्रभावशाली थे। अग्नि-कुण्ड से पैदा होने वाले चारों क्षत्रियों में बल और पराक्रम ठीक उसी प्रकार पाये जाते हैं, जिस प्रकार प्राचीन भारत में सीथियन लोगो में पाये जाते थे। 197