पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२०६

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चौहान,परिहार, सोलंकी और प्रमार-चार क्षत्रिय वंश अग्नि से उत्पन्न हुए थे। इन चारों में चौहान वंशी क्षत्रिय अधिक प्रवल थे और इसलिये उन्होंने अपने राज्य को बड़े विस्तार से कायम कर लिया था। प्रमार वंशी राजाओं का शासन उन दिनों में बड़े विस्तार से फैलता जा रहा था। उसके विस्तार के सम्बन्ध में एक प्रवल लोकोक्ति अव तक पायी जाती है, लेकिन चौहान राजाओ के शासन के विस्तार को खोजना बहुत कुछ कठिन मालूम होता है। उस समय के मिले हुए प्रमाणों को पढ़ने से जाहिर होता है कि जिस समय प्रमार वंशी राजाओं का वैभव बढ़ रहा था, चौहानों का गौरव लगातार घटता जा रहा था। चौहान वंश के इतिहास को पढ़ने से जाहिर होता है कि उनका शासन किसी समय बड़े विस्तार में फैला हुआ था। लेकिन वह अधिक समय तक स्थायी नहीं रह सका। मैहकावती से माहेश्वरी पुरी तक नर्मदा नदी के दोनों किनारों के उत्तर और दक्षिण में चौहानों का राज्य था। उस वंश के प्रवल और शक्तिशाली होने के कारण माण्ड, आमेर,गोलकुण्डा और कोकन तक एवम् उत्तर की तरफ गंगा के किनारे तक चौहानो का राज्य फैला हुआ था। प्रसिद्ध कवि चन्द ने चौहान राजाओ के वैभव का अपने ग्रन्थ में बड़े विस्तार के साथ वर्णन किया है। उसने लिखा है कि चौहान वंशी राजाओं ने अपने बल और पराक्रम से ठट्ठा, लाहौर, मुलतान और पेशावर आदि पर अधिकार करके भारत में अपने राज्य का विस्तार किया था। वहाँ पर जो असुर लोग शासन करते थे, वे चौहानो के भय से भाग गये थे। दिल्ली और कावुल में चौहानों का शासन था। चौहानों के द्वारा ही नेपाल का राज्य माल्हन को मिला था। __ यह पहले ही लिखा जा चुका है कि गढ़ मण्डला का प्राचीन नाम मैहकावती था।* उस मैहकावती के राजाओं की उपाधि बहुत समय से पाल थी। मालूम होता है कि पशुओ का पालन करने के कारण उनको यह उपाधि मिली थी। अहीर वंश के लोगों ने किसी समय समस्त मध्य भारत पर अधिकार कर लिया था। यह अहीर शब्द पाल से बहुत कुछ सम्बन्ध रखता है और अहीर जाति उस वंश की शाखा मालूम होती है । पाल अथवा पालियों का जिन नगरों पर अधिकार था, उनमें भेलसा, भोजपुर, दाप, भोपाल, आइरन और गर्सपुर आदि प्रमुख हैं। __ मैहकावती के एक राज वंशज ने-जिसका नाम अजयपाल था-अजमेर राज्य की प्रतिष्ठा की थी और वहाँ पर उसने तारागढ़ नाम का एक बहुत मजबूत दुर्ग बनवाया था। प्राचीन राजाओं में अजयपाल का नाम भारतवर्ष में आज तक प्रसिद्ध है। प्राचीन ग्रन्थों से साफ प्रकट होता है कि वह एक चक्रवर्ती राजा था। लेकिन उसके शासन के समय का ग्रन्थों में मुस्लिम इतिहासकार ने इमको स्वीकार करते हुए लिखा है कि सम्वत् 746 मे मुसलमान जिस समय पहले पहल भारतवर्ष पर आक्रमण करने के लिये आये थे,उस समय लाहौर और अजमेर में चौहान वंश के हिन्दु राजाओं का शासन था और वहाँ का राजा मुस्लिम आक्रमण का सामना करने के लिये तैयार हुआ था। यह बात भी सही है कि अजमेर में चौहानों की राजधानी थी। यहाँ के प्राचीन ग्रन्थों से पता चलता है कि माल्हन चौहान वंश की एक शाखा है। सिकन्दर के भारत पर आक्रमण करने के समय समुद्र के तटवर्ती नगरी पर जिस मल्लारी नाम के राजा ने आक्रमण किया था, वह माल्हन वश का था, ऐसा मालूम होता है । चौहानों की इस शाखा में अब कहीं कोई अस्तित्व नहीं मिलता। पांच सौ वर्ष पहले इस शाखा को कोई नहीं जानता था। इस वश के एक बूंदी नरेश ने किसी माल्हन स्त्री के साथ विवाह किया था। 198