पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२०७

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कोई उल्लेख नहीं मिलता। पाली भाषा में लिखे हुए जो शिलालेख हमको मिले हैं, उनका हम कोई लाभ नहीं उठा सके। पृथ्वीसिंह मैहकावती से अजमेर आया था। उसके आने का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। परन्तु उसके आने का कारण यह मालूम होता है- कि राजा के पुत्रहीन होने की अवस्था में वह अजमेर में आया था। उसकी स्त्री से चौबीस लड़के उत्पन्न हुए। उन दिनों में वहाँ पर बहु विवाह की प्रथा प्रचलित न थी। माणिकराय उसके चौबीस पुत्रों में से एक का वंशज था और वह सन् 685 ईसवी में अजमेर एवम् साँभर का अधिकारी हुआ। कहा जाता है कि माणिकराय के समय से चौहानों के इतिहास को अन्धकार से मुक्ति मिली। सन् 685 ईसवी के दिनों में से पहले पहल मुसलमानों ने राजताने में प्रवेश किया। उस समय दुर्लभ राय अथवा दूलेराय अजमेर के सिंहासन पर था। मुसलमानों के साथ युद्ध में वह मारा गया। उसका इकलौता सात वर्ष का बेटा दुर्ग के ऊपर खेल रहा था। शत्रुता के द्वारा उसकी भी मृत्यु हुई। दुर्लभराय ने रोशन अली नाम के एक इस्लाम धर्म प्रचारक के साथ अन्याय किया था। उसने अली का अंगूठा कटवा लिया था। इसके बाद वह मक्का चला गया और वहाँ पहुँच कर मूर्ति पूजक राजपूतों के विरुद्ध उसने बहुत सी बातें कहीं। उनसे उत्तेजित होकर मुसलमानों ने सिन्ध के रास्ते से अजमेर मे पहुँचकर आक्रमण किया और दुर्लभराय तथा उसके लड़के को मार कर मुसलमानों ने गढ़ वीटली पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध का वर्णन कहाँ तक सही है, यह नहीं कहा जा सकता। उसके सम्बन्ध में एक दूसरी घटना भी पढ़ने को मिलती है। उससे यह मालूम होता है कि उन्हीं दिनों में खलीफा उमर ने मुसलमानों की एक फौज सिन्ध में भेजी थी। अबुलयास उस सेना का अधिकारी था। आलोर पर अधिकार करने के समय अबुलयास मारा गया। मालूम होता है कि उसके बाद मुसलमानों की उत्तेजित फौज ने मरुभूमि में जाकर राजपूतों पर आक्रमण किया। किसी भी परिस्थति में अजमेर का अधिकारी दुर्लभराय मारा गया और अजमेर पर शत्रुओं का अधिकार हो गया। इस घटना को चौहान कभी भूल न सके और उसके स्मारक के रूप में लोग अब तक दुर्लभराय के स्वर्गीय पुत्र लौठ की पूजा करते हैं। चन्द कवि के अनुसार दुर्लभराय का उत्तराधिकारी बेटा लौठदेव जेठ महीने की बारहवीं तिथि सोमवार के दिन मरा था। मुसलमानों के आक्रमण करने और दुर्लभराय के मारे जाने पर माणिकराय बड़े संकट में पड़ गया। अपने प्राणों की रक्षा करने के लिए वह अपने नगर से भाग गया। उस समय शाकम्भरी देवी के उसको दर्शन हुए। देवी ने माणिकराय से कहा-"तुम इस स्थान पर : अपना राज्य कायम करो और अपने घोड़े पर बैठकर तुम जितनी दूर जा सकोगे, उतनी दूर तक तुम्हारे राज्य की सीमा का विस्तार होगा। लेकिन इस बात का स्मरण रखना कि जब तक तुम लौटकर इस स्थान पर न आ जाओ, घोड़े पर चढ़कर जाने के समय तुम किसी समय अपने पीछे की तरफ न देखना।" देवी के आशीर्वाद को सुनकर माणिकराय उस स्थान से अपने घोडे पर बैठ कर रवाना हुआ। कुछ दूर निकल जाने के बाद वह देवी की आज्ञा को भूल गया। उसने अपने पीछे की तरफ देखा। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। जहाँ तक उसकी दृष्टि गयी, सम्पूर्ण मरूभूमि 199