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अर्थात् सेनापति का पद दिया। सन् 1670 ईसवी तक जगतसिंह दक्षिण में युद्ध करता रहा। उसी वर्प उसकी मृत्यु हो गयी। उसके कोई लड़का न था। इसलिए माधवसिंह के चौथे लड़के कनीराम के पुत्र प्रेमसिंह को कोटा के शासन का अधिकार मिला। प्रेमसिंह में शासन की योग्यता न थी। इसलिए आरम्भ से ही प्रजा उससे असन्तुष्ट रहने लगी। इस असन्तोप के परिणामस्वरूप वह सिंहासन से उतारा गया और उसके पिता के नगर कोइला में वह भेज दिया गया। उसके वंशज अब तक वहाँ रहते हैं। माधवसिंह के पांचवे लडके किशोरसिंह को, जो युद्ध में घायल होने के बाद किसी प्रकार बच गया था, राज्य के सामन्तो ने कोटा के सिंहासन पर बिठाया। औरंगजेब के मुगल-सिंहासन पर बैठने के बाद राजा किशोरसिंह ने अपनी सेना लेकर और औरंगजेब के साथ जाकर दक्षिण में मराठो के साथ युद्ध किया था। सन् 1686 ईसवी मे अरकाट गढ के दुर्ग पर युद्ध करते हुये वह मारा गया। किशोरसिंह के साहस और शौर्य में किसी प्रकार का सन्देह नही किया जा सकता। उसके शरीर मे पचास जख्मों के निशान उसके जीवन के अन्त तक रहे। उसके तीन लड़के थे। विशनसिंह, रामसिंह और हरनाथसिंह। राजपूतों की प्रथा के अनुसार बड़े लड़के विशनसिंह को कोटा के सिंहासन पर बैठना चाहिए था। लेकिन किशोरसिंह के दक्षिण में जाने के समय उसने अपने पिता की आजा का उल्लंघन किया, इसलिए किशोर सिंह ने क्रुद्व और असन्तुष्ट होकर विशनसिंह को उत्तराधिकार से वञ्चित करके आणता नामक स्थान उसे दे दिया। विशनसिंह से पृथ्वीसिंह नामक बालक का जन्म हुआ। वह बाद में आणता की जागीर का सामन्त बनाया गया। उसके लड़के का नाम था अजीत । अजीतसिंह के तीन लड़के पैदा हुए, छत्रसाल, गुमानसिंह और राजसिंह। किशोरसिंह के दूसरे लड़के रामसिंह ने अपने पिता की आज्ञानुसार दक्षिण मे जाकर मराठों के साथ युद्ध किया था और उन युद्धों में उसने अपने पिता की प्रशंसा पायी थी। इसलिए पिता किशोरसिंह के मर जाने पर उसे राज्य के सिंहासन का अधिकार प्राप्त हुआ। बादशाह औरंगजेब के मर जाने पर मुगल सिहासन के लिए दिल्ली मे फिर संवर्प पैदा हुआ। रामसिंह ने शाहजादा आजम के पक्ष का समर्थन किया और वह उसके बड़े भाई मुअज्जम के विरुद्ध दक्षिण में युद्ध करने के लिए गया। सन् 1708 में जाजौ के युद्ध मे वह मारा गया। उस युद्ध में बूंदी के राजा ने शाहजादा मुअज्जम का पक्ष लेकर युद्ध किया था। रामसिंह के बाद भीमसिंह कोटा का राजा हुआ। उसके शासनकाल में कोटा राज्य ने धन, सम्मान और सामर्थ्य में इतनी उन्नति की, जिससे वह भारतवर्ष के प्रथम श्रेणी के राज्यों में माना गया। इसके पहले कोटा का राज्य तीसरी श्रेणी के राज्यों में माना जाता था। बादशाह बहादुरशाह के मरने पर फर्रुखसियर मुगल सिंहासन पर बैठा। उस समय दोनो सैयद बन्धुओ ने मुगल राज्य का शासन किया। कोटा के राजा भीमसिंह ने सैयद वन्धुओ के पक्ष में होकर अपने राज्य की उन्नति की। राजा माधवसिंह के समय से कोटा के राजा, बादशाह के यहाँ दो हजार की सेना पर मनसबदार होते चले आ रहे थे। लेकिन दोनों बन्धुओं ने भीमसिंह पर प्रसन्न होकर उसके राज्य की गणना प्रथम श्रेणी के राज्यों में की और वहाँ के राजा को पाँच हजार सेना पर 263