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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७०

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मनसबदार का पद दिया। बूंदी के इतिहास में लिखा जा चुका है कि कोटा के राजा भीमसिंह ने किस प्रकार बूदी के राजा बुधसिंह को मार डालने की कोशिश की थी। भीमसिंह ने इसके सम्बन्ध मे सैयद बन्धुओं और आमेर के राजा जयसिंह से सहायता ली थी। इसका वर्णन बूंदी के इतिहास मे किया जा चुका है। दोनो सैयद बन्धुओ ने भीमसिंह को पश्चिम में कोटा से पूर्व में अहीरबाड़े से पठार की सम्पूर्ण भूमि का अधिकार दे दिया था। वह विस्तृत भूमि खीची लोगों और बूदी के राज्य की थी। उसने इसी प्रकार गागरोन का प्रसिद्ध दुर्ग प्राप्त किया था और अलाउद्दीन के आक्रमण के समय बड़े साहस के साथ उस दुर्ग की रक्षा की थी। उसने मऊ, मेदाना, शेरगढ, बारॉ, मंगरोल और बड़ौदा आदि चम्बल नदी के पूर्वी दुर्गो पर अधिकार कर लिया था। जिनके द्वारा राज्य की पश्चिमी सीमा बन गयी थी। इसके बाद भीलो ने अपने पूर्वजों के नगरों और ग्रामों पर अधिकार कर लिया। उनके बीच मे मनोहर थाना एक स्थान था जो अब भी दक्षिण की तरफ कोटा की सीमा पर है। वहाँ पर भीलों ने अपनी राजधानी कायम की और उनका राजा चक्रसेन वहाँ पर रहने लगा। उस राजा के अधिकार में पांच सौ सवार सैनिक और आठ सौ धनुपधारी थे। मेवाड़ से लेकर सभी स्थानों के भील चक्रसेन को अपना राजा मानते थे। ये भील लोग धार के राजा भीमसिंह के समय तक अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करते आये थे। परन्तु कोटा के राजा भीमसिह ने भीलों के नगरो और ग्रामो पर आक्रमण करके और भीलों के वंश को विध्वंस करके अपने राज्य मे मिला लिया। इन्ही दिनो मे उसने नरसिंहगढ़ और पांटन पर भी अधिकार कर लिया। राजा भीमसिंह यदि और कुछ दिनो तक जीवित रहता तो कोटा राज्य की सीमा को वह पहाड़ के बाहर तक बढ़ा लेता। उसने अनारसी, डिग, पडावा और चन्दावतों के नगरो को भी अपने राज्य मे मिला लिया था, लेकिन भीमसिंह के मरने के बाद ये सभी नगर और ग्राम कोटा राज्य से निकल गये। प्रसिद्ध कुलीच खॉ ने, जिसने इतिहास मे निजामुलमुल्क के नाम से प्रसिद्वी पायी है, दक्षिण मे स्वतन्त्र रूप से हैदराबाद राज्य की प्रतिष्ठा की थी। उसने दिल्ली के बादशाह के साथ विद्रोह करके मुगल साम्राज्य के नगरो और ग्रामों को लूटना आरम्भ किया। बादशाह ने जव यह सुना तो उसने आमेर के राजा जयसिंह, कोटा के राजा भीमसिंह और नरवर के राजा गजसिंह को कुलीच खॉ पर आक्रमण करने और उसे कैद करके लाने का आदेश दिया। भीमसिंह ने निजामुलमुल्क के पास जाकर और उसके साथ पगड़ी बदल कर वन्धुत्व का सम्बन्ध कायम किया। इसके बाद कुलीच खॉ ने जयसिंह को आक्रमण के लिए आता हुआ जानकर भीमसिह के नाम मित्र भाव से एक पत्र लिखकर भेजा। उसमें उसने लिखा कि मैंने दिल्ली के बादशाह का कोई नुकसान नही किया और न उसके किसी ग्राम तथा नगर को लूटा है। इसलिए मेरे सम्बन्ध मे बादशाह से जो कुछ भी कहा गया है, वह सब असत्य है। जयसिंह एक पडयन्त्रकारी है ओर वह मेरे विनाश के लिए हमेशा चेप्टा करता रहता है। इसलिए आपसे मेरा अनुरोध है कि आप उसकी बात का.कभी विश्वास न करे और मेरी दक्षिण यात्रा में कोई रूकावट न डालें। निजामुलमुल्क का यह पत्र पाकर हाडा राजा भीमसिह ने उत्तर मे लिखकर भेजा · "मित्रता और कर्तव्य परायणता मे अन्तर होता है। ये दोना चीजे एक नही है और न वे एक 264