पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२७८

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अध्याय-65 झाला जालिमसिंह व उसकी उपलब्धियां ___ सन् 1766 ईसवी में गुमान सिंह कोटा के सिंहासन पर बैठा। उन दिनों में वह साहसी और बुद्धिमान मालूम होता था। इन्हीं दिनों में मराठा दल ने राजस्थान में आक्रमण किया और उसने राजपूतों का सर्वनाश करने की चेष्टा की। गुमान सिंह में उनसे अपने राज्य की रक्षा करने की शक्ति थी। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद उसे शासन का भार एक बालक को सौंप देना पड़ा। कुछ बीच की परिस्थितियों पर प्रकाश डालने के बाद उस घटना का हमने उल्लेख किया है। कोटा राज्य के साथ जालिम सिंह का घनिष्ठ सम्बन्ध था और इस राज्य के इतिहास के साथ उसके कार्यो का ऐसा मिश्रण है, जिससे उसके नाम के प्रति किसी प्रकार की उपेक्षा अथवा अवहेलना नहीं की जा सकती। वास्तव में जालिम सिंह इतनी अच्छी राजनीति जानता था कि वह कहीं पर भी रहकर अपनी मर्यादा कायम कर सकता था। जालिम सिंह झालावंशी राजपूत था। सन् 1740 ईसवी में उसका जन्म हुआ था। उसी वर्ष एक शक्तिशाली सेना लेकर भारतवर्ष पर नादिरशाह ने आक्रमण किया था। मोहम्मदशाह उन दिनों में दिल्ली के मुगल सिंहासन पर था और दुर्जनशाल कोटा का राजा था। मोहम्मदशाह ने नादिरशाह के साथ युद्ध किया था। जालिम सिंह के एक ही नेत्र था। उसने झटवाड़ा के युद्ध में अपनी अद्भुत राजनीति और वीरता का परिचय देकर राजस्थान मे प्रसिद्धि पायी थी। जालिम सिंह के पूर्वज सौराष्ट्र के झाला के अन्तर्गत हलवद के साधारण सामन्त थे। उस वंश के भावसिंह नामक एक नवयुवक ने अपने पिता का स्थान छोड़कर किसी दूसरे राज्य में जाने के लिए यात्रा की थी। उन दिनों में औरंगजेब के वंशजों में दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करने के लिए संघर्ष चल रहा था। भावसिंह ने वहाँ जाकर एक पक्ष का आश्रय लिया। उन दिनों में राजा भीमसिंह दिल्ली के सैयद बन्धुओं से मिलकर अपनी शक्ति को मजबूत बना रहा था, उन्हीं दिनो में भावसिंह का लड़का माधव सिंह कोटा में आया। उसके साथ पच्चीस सवार सैनिक थे। राजा भीमसिंह ने उसके झाला वंश का परिचय पाकर सम्मानपूर्वक उसको अपने यहाँ स्थान दिया और उसे अत्यन्त होनहार समझकर न केवल उसके साथ स्नेह पैदा किया, बल्कि माधव सिंह की बहन का विवाह अपने लड़के अर्जुन सिंह के साथ कर दिया और माधव सिंह को रहने के लिए आणता नामक नगर दे दिया। माधव सिंह समझदार, साहसी और राजनीतिज्ञ था। इसलिए राजा भीमसिंह ने प्रसन्न होकर उसे सेनापति का पद दिया और जिस दुर्ग के महल में वह स्वयं रहता था, उस दुर्ग का उसने उसे अधिकारी बना दिया। उसके बाद कोटा राज्य मे माधवसिह का सम्मान लगातार बढ़ा और उसने ख्याति प्राप्त की। 272