पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८०

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परिवर्तन हुआ और उस परिवर्तन में जालिम सिंह का सौभाग्य निर्वल होता हुआ दिखायी पड़ने कोटा के सिंहासन पर जब गुमान सिंह बैठा तो राज्य में जालिम सिंह का बढ़ता हुआ प्रभुत्व उसे अच्छा न मालूम हुआ। इसलिए राजा भीमसिंह ने जो आणता नगर माधव सिंह को रहने के लिए दे दिया था और जहाँ पर अब भी झाला वंश का एक परिवार रहता ह, राजा गुमान सिंह ने सेनापति का पद और आणता का नगर जालिम सिंह के मामा भूपति सिंह को दे दिया।* राजा गुमान सिंह का व्यवहार देखकर जालिम सिंह को अपना अपमान मालूम हुआ। इसलिए वह कोटा राज्य छोड़कर किसी दूसरे राज्य में चले जाने की वात सोचने लगा। आमेर राज्य के कछवाहों से लड़कर झटवाड़ा की लड़ाई में उसने कोटा राज्य की रक्षा की थी। इसलिए वह जयपुर राज्य जा नहीं सकता था। मारवाड़ राज्य जाना उसने अपने लिए अच्छा नहीं समझा। इस दशा में जालिम सिंह मेवाड़ राज्य के सम्बन्ध में बार-बार विचार करने लगा। वहाँ पर उसके वंश का एक राजपूत राणा के दरवार में था और मेवाड़-राज्य में उसने एक प्रधान सामन्त का पद पाया था और झाला सामन्त के नाम से प्रसिद्ध था। यह सामन्त जालिम सिंह के वंश का था। उसने मेवाड़ के संघर्ष में अरिसी का पक्ष लेकर उसको मेवाड़ के सिंहासन पर विठाया था। इसलिए राणा अरिसी झाला सामन्त से बहुत दवा हुआ था और राणा को विवश बनाकर उस झाला सामन्त ने शासन में बहुत से अधिकार अपने हाथ में कर लिये थे। जालिम सिंह ने सोच-समझकर कोटा राज्य को छोड़ दिया और वह मेवाड़ में चला आया। उसकी योग्यता की प्रशंसा पहले ही राणा अरिसी सुन चुका था। इसलिए राणा ने जालिम सिंह को अपने यहाँ सम्मान के साथ लिया। वह साहसी, नीतिकुशल और शूरवीर था। इसलिए थोडे ही दिनों मे जालिम सिंह राणा का विश्वासपात्र बन गया। राणा की दशा इन दिनों में बहुत शोचनीय थी। जिस झाला सामन्त की सहायता से वह सिंहासन पर बैठा था, वह सामन्त मेवाड़ राज्य में मनमानी कर रहा था। उसने विरोधी सामन्तों की जागीरों को राज्य मे मिला लिया था और राज्य के जिन लोगों ने विद्रोह किया, उनके साथ उसने भयानक अत्याचार आरम्भ कर दिये थे। राणा अरिसी इन सब बातों को अच्छा नहीं समझता था। परन्तु उस झाला सामन्त के विरुद्ध वह कुछ नहीं कर सकता था और उसकी दुर्वलता में झाला सामन्त राज्य मे, जो चाहता था करता था। राणा अरिसी ने जालिम सिंह की प्रशंसा पहले से ही सुनी थी। उसको वह साहसी ओर नीतिकुशल समझता था। इसलिए राणा ने उससे सभी प्रकार की आशायें की। जालिम सिंह ने राणा की परिस्थितियों का अध्ययन किया। इसके बाद उसने एक योजना तैयार की, जिसमें दलवाड़ा का वह झाला सामन्त जान से मारा गया। उसके मरते ही राणा की सम्पूर्ण विवशता का अन्त हो गया। इसके लिए राणा ने जालिम सिंह को राजराणा की उपाधि दी और मेवाड़ की दक्षिणी सीमा पर चित्रखाड़िया नामक स्थान उसको पुरस्कार में दिया। उस समय से जालिमसिह मेवाड़ के दूसरी श्रेणी के सामन्त मे माना गया। • इस आणता नगर का नाम कई स्थलों पर और दूसरे ग्रन्थों में नान्दता लिखा गया है।-अनु 274