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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८१

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यद्यपि झाला सामन्त के मारे जाने से राणा की वहुत-सी कठिनाइयों का अन्त हो गया था, परन्तु मेवाड़ के सिंहासन के लिए जो संघर्ष पहले चल रहा था और उसका जो वंशज सिंहासन पर बैठना चाहता था, वह राज्य के अनेक सामन्तों से मिलकर अव भी राणा के विरुद्ध पडयन्त्र कर रहा था। वह अभी तक शान्त न था और मेवाड़ के सिंहासन से राणा अरिसी को हटा कर स्वयं बैठने की चेष्टा कर रहा था। उसने इन दिनों में फिर से विद्रोह किया और अपनी सहायता में मराठों को लाकर उसने राणा को सिंहासन से उतार देने का प्रयत्न किया। जालिमसिंह के साथ परामर्श करके राणा अरिसी ने एक सेना तैयार की और उसने मराठों के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया। इस युद्ध में राणा के विरोधी और मराठों की विजय हुई। जालिम सिंह घायल होकर शत्रुओं के द्वारा कैद हो गया। इस युद्ध में पराजय होने के कारण उसके मेवाड़ राज्य का भाग विजेता की दया पर निर्भर हुआ। मराठा सेना ने उदयपुर को जाकर घेर लिया। मेवाड़ के राजपूतों ने बड़े साहस के साथ मराठो के साथ युद्ध किया। परन्तु शत्रु-सेना के सामने उनकी संख्या बहुत कम होने के कारण उनकी एक न चली। अंत में राणा को मराठा सेनापति के साथ सन्धि कर लेनी पड़ी। उस दशा में अम्बाजी इङ्गले के पिता त्रयम्बकराव ने जालिम सिंह को छोड़ दिया। अपने जख्मों को सेहत करने के बाद जालिम सिंह ने अपने भविष्य पर फिर एक बार विचार किया। मेवाड़ में कुछ दिन रहकर उसने भली प्रकार इस बात को समझ लिया कि यहाँ के राणा की शक्तियाँ बहुत दीन-दुर्वल हो चुकी हैं। इसलिए उसके हाथ रहकर में अपने भाग्य का निर्माण नहीं कर सकता। इसलिए उदयपुर छोड़कर पण्डित लालजी बेलाल के साथ वह कोटा चला आया। बुकायनी के युद्ध में बहुत-से सैनिकों के मारे जाने से मराठा सेनापति मल्हार राव होलकर बहुत निर्बल हो गया था, फिर भी वह अपनी सेना लेकर कोटा राज्य पर आक्रमण करने के लिए रवाना हुआ। कोटा के राजा गुमान सिंह को समाचार मिला कि मल्हर राव होलकर अपनी सेना के साथ आक्रमण करने के लिए आ रहा है। वह घबरा उठा और उसने इस बात का निश्चय कर डाला कि जैसे भी हो सके, होलकर के साथ सन्धि कर लेना आवश्यक है। इस प्रकार निर्णय करके राजा गुमान सिंह ने सन्धि करने के लिए अपने सेनापति को होलकर के पास भेजा। परन्तु उस सेनापति को सफलता न मिली और वह निराश होकर लौट आया। इन दिनों में जालिम सिंह उदयपुर से कोटा आ गया था। उसने मल्हर राव होलकर के कारण कोटा राज्य पर आयी हुई विपदा को सुना और उसने राजा गुमान सिंह से भेंट करने का इरादा किया। राजा गुमान सिंह स्वयं इस समय संकट में था। इसलिए उसने जालिम सिंह को अपने राज्य में फिर से स्थान दिया। मराठों ने किले को घेर कर उस पर अधिकार करने की चेष्टा की। परन्तु उन्हें सफलता न मिली। इस दशा में मराठों ने अपने एक हाथी के द्वारा दुर्ग की दीवार को तोड़ने की कोशिश की। उस समय हाड़ा सेनापति माधव सिंह को मालूम हुआ कि यदि दुर्ग की दीवार टूट गई तो दुर्ग पर शत्रु का अधिकार हो जाएगा। यह सोचकर वह किसी भी तरह दुर्ग की रक्षा करने के उपाय सोचने लगा। इसी समय माधव सिंह ने देखा कि शत्रु का हाथी अपने मस्तक की टक्कर से दुर्ग का फाटक तोडने की कोशिश कर रहा है। उसी समय माधव सिंह अपने हाथ में तलवार 275