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पृष्ठ:राजस्ठान का इतिहास भाग 2.djvu/२८२

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लेकर दर्ग के ऊपर से टक्कर मारने वाले हाथी की पीठ पर कूद पड़ा और उसने पीलवान को मारकर नीचे गिरा दिया। इसके बाद उसने हाथी की गर्दन पर अपनी तलवार के हाथ मारे जिससे वह भयानक रूप से घायल हुआ। दुर्ग से कूदने के वाद माधव सिंह ने अपने प्राणों की आशा छोड़ दी थी। दुर्ग की रक्षा करने के लिए उसका यह अन्तिम प्रयास था। माधव सिंह का इस प्रकार शत्रु के हाथी पर कूटन और उसको मार करते हुए देखने के बाद हाड़ा राजपूत दुर्ग का दरवाजा खोलकर एक साथ निकल पड़े और अपनी तलवारों से उन्होंने शत्रु-सेना का संहार करना आरम्भ किया। बहुत समय के बाद युद्ध की परिस्थिति बदलनं लगी। शत्रुओं की अपेक्षा संख्या में कम होने के कारण वहुत-से हाड़ा राजपूत मारे गये और अन्त में मराठों की जीत हुई। राजपूतों को पराजित करके मराठों ने काटा राज्य के अनेक स्थानों पर भयानक अत्याचार किये और लूटमार करने के बाद उन्होंने सुकेत नामक दुर्ग को घेर लिया। यह समाचार राजा गुमान सिंह को मिला। उसने उस दुर्ग रक्षक के पास अपना संदेश भेजा कि जैसे भी हो सके शत्रु से दुर्ग की रक्षा होनी चाहिए। वुकायती के युद्ध में राजपूतों ने मराठों का भयानक रूप से संहार किया था। राजा का इस प्रकार आदेश पाकर कोटा राजधानी में जाने के लिए अपनी सेना के साथ आधी रात को निकलकर दुर्ग का रक्षक रवाना हुआ। रात के अंधकार में जिस मार्ग से वह जा रहा था, उसकी सूखी घास में एक साथ आग जल उठी। उमी समय मराठा सेना ने जाते हुये राजपूतों पर एकाएक आक्रमण किया। उसमें कोट के बहुत से सैनिक मारे गये। सेनापति मल्हार राव होलकर ने बुकायनी के युद्ध में भयानक क्षति उठायी थी। लेकिन इस बीच में उसने अपनी शक्तियों को फिर से मजबूत बना लिया था। कोटा का राजा गुमान सिंह इस समय बड़े संकट में था। उसको अपनी रक्षा के लिए कोई उपाय न मिल रहा था। इसलिये उसने बहुत-कुछ सोचकर इस बात का निर्णय किया कि झटवाड़ा के युद्ध में जालिम सिंह के द्वारा हाड़ा राजपूतों ने सफलता पायी थी और इस समय भी जालिम सिंह के द्वारा ही कोटा राज्य की रक्षा का कोई उपाय निकल सकता है। इस प्रकार सोच-समझकर उमने जालिम सिंह को बुलाया और होलकर के साथ सन्धि करने का उत्तरदायित्व उसने उसको सौंपा। जालिम सिंह सन्धि का प्रस्ताव लेकर होलकर के पास गया। दोनों पक्ष की बातचीत समाप्त होने के बाद होलकर ने सन्धि करना स्वीकार कर लिया। उस सन्धि में निश्चय हुआ कि कोटा के राजा गुमान सिंह से छ: लाख रुपये लेकर मल्हारराव होलकर अपनी सेना के साथ कोटा राज्य से वापस चला जाएगा। जालिम सिंह के निर्णय के अनुसार होलकर के साथ सन्धि हो गयी। वह छः लाख रुपये लेकर कोटा से चला गया। जालिम सिंह की सफलता पर गुमान सिंह बहुत प्रसन्न हुआ। उसके अधिकार के जो नगर और ग्राम उसने उससे ले लिए थे, उसको फिर से दे दिये गये और कोटा-राज्य का फिर उसको सेनापति बना दिया। इसके कुछ दिनों के बाद गुमान सिंह बीमार पड़ा। उसका रोग सेहत न हो सका। मरणासन्न अवस्था में पहुँच कर वह इस बात के लिए चिन्तित हुआ कि अपने छोटे बालक 276