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लेकिन अपनी ओर की सेना को गोलियां चलाने का आदेश नहीं दिया गया था। इसलिये वह सेना रुक कर उस तरफ देखने लगी जिधर से गोलियाँ आ रही थीं। मालूम हुआ कि नदी के पार की एक ऊंची भूमि पर खड़े हुए दो आदमी गोली चला रहे हैं। सेना चुपचाप खड़ी रही और उसके वाद उसको आगे बढ़ने की आजा दी गयी। उसी समय सेना के आगे के कई एक सैनिक गोलियो से घायल हो गये। उन दोनों आदमियों की तरफ से लगातार गोलियाँ आ रही थीं। परन्तु हमारी तरफ से एक भी गोली नहीं मारी गयी इसलिये अपनी सेना को आदेश दिया और उन दोनों पर गोले मारे गये लेकिन एक भी गोला उनके नहीं लगा। वे दोनों अब भी बड़ी निर्भीकता के साथ गोलियाँ चला रहे थे और उनकी गोलियों से जालिम सिंह के सैनिक घायल हो रहे थे। फिर भी उन दोनों के साहस को देखकर उनके प्राणों की रक्षा करना आवश्यक मालूम हुआ। इसलिये जालिम सिंह की सेना को आदेश दिया गया कि इस सेना के जो लोग आगे बढ़कर उन लोगो पर आक्रमण करने का साहस करें, उन्हें आगे बढ़ना चाहिये। यह सुनते ही दो रुहेले सैनिक अपने हाथो में तलवारें लेकर आगे बढ़े और आक्रमण करके उन्होंने उन दोनों को मार डाला। आश्चर्य की बात यह है कि उन दो आदमियों ने जालिम सिंह के दस दल सैनिकों और वीस तोपों का सामना किया और लगातार गोलियां चलाई। वे दोनों हाड़ा राजपूत थे, जिनको जालिम सिंह ने उनके अधिकारो से वंचित किया था। इसीलिये इस अवसर पर आकर उन्होंने बदला लिया और अन्त में वे मारे गये। हाडौती राज्य के जिन लोगों ने महाराव के साथ इस समय अपनी राजभक्ति का परिचय दिया, उससे मालूम होता है कि राजपूतों में ऐसे कठोर अवसरों पर भी अपना धर्मपालन करने का कितना भाव रहता है। साथ ही यह भी प्रकट होता है कि जालिम सिंह का शासन कितना कठोर था। यहाँ तक कि जो एक सामन्त उस सन्धि में प्रतिनिधि के रूप में रहा था, उसने भी महाराव का साथ दिया और उसका एक लड़का इस युद्ध में बुरी तरह से घायल हुआ। यद्यपि वह सामन्त जालिमसिंह के साथ वैवाहिक सम्बन्ध रखता था और उसने राज राणा के द्वारा कोटा राज्य में जागीर पायी थी। महाराव किशोर सिंह ने अपनी वची हुई सेना के साथ युद्ध से निकलकर एक पहाड़ी नदी को पार किया। वहाँ पर पहुंचने पर उसका घोड़ा गिर गया क्योंकि उसके शरीर में गोली का एक घाव था। इसके बाद महाराव किशोर सिंह अपने तीन सौ अश्वारोही सेना के साथ बडौदा चला गया, जिन लोगो ने अपनी राजभक्ति का परिचय देकर महाराव का साथ दिया था, उनको हमने अपना शत्रु नहीं समझा और इसलिये मराठो की तरह उनका पीछा करके हमने उनको नष्ट करने की चेष्टा नहीं की। वे हमारे विरुद्ध युद्ध में लडे थे। लेकिन आत्म-रक्षा के लिये उनको ऐसा करना पड़ा था। सन्धि के द्वारा कोरा राज्य के भविष्य को जिस प्रकार घरेलू और बाहरी विपदाओ तथा संघर्पो से अलग रखने की कोशिश की गयी थी, इन दिनों में आपसी विद्रोह ने उसको नष्ट कर दिया। इस विद्रोह के दो कारण थे। एक पृथ्वीसिंह था, जो युद्ध में मारा गया था। इस युद्ध में कोटा के बहुत से सामन्तो ने जालिम सिह का पक्ष छोड़कर महाराव का साथ द्रिया था। 321